भाव हल्के, रोटी भारी


फिर भेड़ चाल चलने की मेरी तैयारी 
भाव शब्द सब हल्के, है रोटी भारी


ख्वाब किनारे कर, या तू भूखे मर 
टुकड़ा टुकड़ा टूट रहा हिम्मत हारी


मार्केटिंग का चोगा, फिर से डाल है
बेच समान दर दर न शब्द बने लाचारी


मन की भूख मिटाएँ कविता
तन को कुछ न लाएं 
भाव उन्ही का बिकता 
जो ब्रांड बन पाएं


ख्वाब सुहाने छोड़ सयाने
रोटी की कर बात 
जिसके जेब है पैसा 
वो बदले हालात


: शशिप्रकाश सैनी


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Comments

  1. bahut hi santoshjanak janak rachna...
    " मन की भूख मिटाएँ कविता " kaviyon ke liye kavita hi unka dhan hai...

    apne is kavita me jeeven ki vastavikta se jure katu stya ko bhi ujagar kiya hai ki
    " जिसके जेब है पैसा
    वो बदले हालात "

    kavita tabhi likhi jati hai jab bhav jagti hai. bhav ka koi mulya nahi hota qki wo kharida nahi ja sakta par roti ka mulya hota hai aur ye satya hai...

    uttam rachna...

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