ये कवि बड़ा बेबस है
गर्मी है घमौरियाँ हैं
उमस है
ये कवि बड़ा बेबस है
घर जा नहीं सकता
वहाँ की बरसात
यहाँ ला नहीं सकता
कई रातें चना ही बना है
भयंकर भूख का जवाब
माँ के हाथ का खाना
एक सुहाना ख्वाब
हौसला आसमां कभी
कभी जमीं पर हो जाता है
मौका हो या रिश्ता
मेरे छूने से पत्थर हो जाता है
कुछ नहीं पत्थर होता
तो यह दिल यह आंखें
आंखों में ख्वाब भरे
दिल धड़कता ही रहता है
: शशिप्रकाश सैनी
:)
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