कब होगी चारों ओर सुबह
रात भयावह भोर सुबह दिल्ली हैं कमजोर सुबह रूपया रोए गरिमा खोए कब होगी चारों ओर सुबह हम होंगे घनघोर सुबह जब टूटेगी ये डोर सुबह सर के सर बदले काटेंगे कब होगी चारों ओर सुबह मानवता उस छोर सुबह हम होते आदमखोर सुबह सबला बन नर मुंड पहन लो तब होगी चारों ओर सुबह जनता में क्या जोर सुबह कुर्सी को झकझोर सुबह राजवंश का राज हटे तब होगी चारों ओर सुबह नाचे मन में मोर सुबह कानों को दे शोर सुबह मालिक हम तुम नौकर हो तब होगी चारों ओर सुबह : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध Click Here //