हम तुम और इंडीब्लॉगर
( इंडीब्लॉगर का अनुभव) होठो पे हँसी मेरी जानते हो क्या है इंडी मीट का अनुभव है न कोई कारण दूसरा है इंडी ने पुकारा ब्लॉगरो की फौज हुई हम से मिले तुम क्या खूब मौज हुई ज़िन्दगी के स्वाद में कारण तुम भी हो इंडी तुम मेरी खिचड़ी में नमक हो कभी मीठा हो थाली का स्वाद ब्लॉगो का उतार जुबा तक लाया गुलदस्ता सजाया लाया फुल हर डाली का (कनेक्टेड हम तुम) आइना मेरा बोलने लगा तो क्या होगा राज खोलने लगा तो क्या होगा आईने से अपने डरता हू की ये जनता है मुझे असली शक्ल में कल को दुनिया न जान ले और ये छह औरते अपना आइना साँझा कर रही है दुनिया से न डर रही है एक पल को लगता है ये समझदार नहीं है फिर आता है ख्याल कितनी हिम्मत लगी आम आदमी की बुजदिली ही इसे आम रखेगी खास होने के लिए कुछ खासियत दिखानी पड़ेगी जिंदगी पे अपनी कैमरा लगाना आसान नहीं हम तुम जानते है अपने डर से डर भागा जाना कोई समाधान नहीं स्क्रीन पे चल रहे थे कुछ पल जैसे अपनी ही हो जिंदगी अपना ही हो घर गुल...