मुक बधिर है दिल्ली
मुक बधिर हैं दिल्ली
कानो तक आवाज़ नहीं जाती हैं
ये दस जनपथ के गुलाम
अपने ही लोगो पे लाठियां चलाते हैं
सात रसे कोर्से रोड नपुंसक
इसमें बची कोई लाज नहीं
इसकी कोई अपनी आवाज़ नहीं
ये जलियावाल बाग़ दोहराती हैं
राजवंश जो कुचल रहा हैं
जनता के अरमानो को
भूल गया हैं वो की
ये देश किसके बाप की नहीं बपौती हैं
कोई मालिक अगर हैं
तो वो जनता एकलौती हैं
: शशिप्रकाश सैनी
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