एक रात बगल में पौआ था
एक सांस में रख डाली
बिन चखने के चख डाली
न कोयल थी ना कौआ था
एक रात बगल में पौआ था
सब नींद ख्वाब पे ताला जड़
मंज़िल वंज़िल के पार निकल
इक करवट पर अड़े रहे
हम बेसुध ही तो पड़े रहे
न कोयल थी ना कौआ था
एक रात बगल में पौआ था
डिब्बी में एक ही सुट्टा था
वो सच था बाकी झूठा था
हम जला बुझा के पीते थे
सच में झूठ भी जीते थे
न कोयल थी ना कौआ था
एक रात बगल में पौआ था
: शशिप्रकाश सैनी
#Sainiऊवाच #Hindi #poetry
Comments
Post a Comment