किसी साज का न साथ झंकार हम नहीं
चुभती रही कानों में
वो आवाज हम रहे
किसी साज का न साथ
झंकार हम नहीं
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कौन जिंदा है
कौन मर गया होगा
इस भागती भीड़ को
क्या पता होगा ?
यह महानगर है
यहाँ कोई किसी का नहीं
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नई सुबह के इंतजार में
अंधियारे से कब तक लड़ना
चढ़ती सांसें, घटती हिम्मत
मरना जीना, जीना मरना
कितने ख्वाब हकीकत होते?
कितनों को पैबंद मिली ?
नई सुबह के इंतजार में
कितनों ने है दम तोड़ा
कितनों को है कैद मिली
फिर भी धड़के थोड़ा-थोड़ा
: शशिप्रकाश सैनी
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