घर चिडीयाघर हो गया
घर चिडीयाघर हो गया
अतिथि आने का ये असर हो गया
कोई बन्दर हुआ कोई मगर हो गया
ललचता है कोई झपटा है कोई
ललचता है कोई झपटा है कोई
और मेरी आंख में खटकता है कोई
ये अतिथि नहीं अभिशाप है
क्या ये पूर्व जन्मो के पाप है
ये अतिथि आने की व्यथा है
क्या टिक जाना इनकी प्रथा है
बच्चे है इनके सैतान करते हुडदंग
हे इश्वर बंद करो ये व्यंग
:शशिप्रकाश सैनी
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