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Showing posts from November, 2014

हाँ! मेरी फटती है

कभी हल्के हल्के, कभी जोरो से  कभी एकांत में, कभी भीड़ में  कभी चारों ओरों से फटती है  हाँ ! मेरी फटती है पहली बार कब फटी थी  शायद जब राकेश की नाक तोड़ी थी  फिर फटने का सिलसिला चलता रहा कभी खुद के कामों से  कभी दुनिया के ईनामों से चूतडों में सरसराहट हुई  और मेरी फट गई  हाँ ! मेरी फटती है दूसरी बार  जब गुरप्रीत को धमकाया था वो अपनी मम्मी ले घर आया था  तब आकाशवाणी हुई थी  “बेटा ! आज तेरी चौतरफा फटेगी” और फटी, फटना ही था दो दिन तक लगातार फटती रही  हाँ ! मेरी फटती है कितनी बार? कैसे? कहाँ-कहाँ? फटी ! कितना बतलाऊं  मेकैनिकस के पेपर में  बी एच यूँ की काउंसलिंग में नौकरी के पहले दिन लगातार निरंतर फटी है  हाँ ! मेरी फटती है दिल्ली के किस कोने में  किस वक्त मेरी नहीं फटी आज फिर एक बार  चूतड़ों ने सरसराहट महसूस की है हाँ ! मेरी फट रही है आज फर्श पे फट रही है  तों क्या कल अर्श पे नहीं फटेगी ? फटेगी जरुर फटेगी चार गुना ज्यादा फटेगी तब फटने के कारण दूसरे होंगे  पर फटेगी जरुर  हाँ ! मेरी फटती रहेगी

घर आई कब पतोहिया

माई गरियावेलिन  "दुनिया खिलावत ह  पोता आउर पोतिया  कोखी में कुपूत भया न माने एको बतिया ए राम जी बतावा  घर आई कब पतोहिया" बाऊ गरियावेलन "पढइली लिखइली  बहइली ढेर नोटिया लईका बिगड़ गल  न माने एको बतिया ए राम जी बतावा  घर आई कब पतोहिया" तोही कटबू तरकारी  पतोहिया आके तारी  ताना ढेर मारी  "नसिबिया हमार  फुट गईल भईया  ए राम जी बतावा  काहे देला कवि सईया" : शशिप्रकाश सैनी 

अंतिम उजाला (नाटक)

कल्लू डोम- अरे मोहिनी बता बाबू को यहाँ क्या कर रही है तू , इनमें से कोई तेरा ग्राहक भी तो नहीं बन सकता फिर क्यों अपनी रात खराब करती है यहाँ बता ! वैश्या (मोहिनी)- मुझे अच्छा लगता है यहाँ इसलिए आती हूँ !   जिन्दों से घिन आती है   मुर्दे मुझे अच्छे लगतें हैं इसलिए आती हूँ !   वो जो उस तरफ हैं सब जानवर हैं हर रात नोची जाती हूँ मैं ,   हाँ ! जानवर जरुर बदल जाता है और जो नहीं बदलती वो मेरी किस्मत वही रोज का नोचना खसोटना जारी रहता है । ( वैश्या मुर्दे की तरफ मुह कर के जोर से बोलती है । ) वैश्या (मोहिनी)- ले छू मुझे नोच ! मैं पैसे भी नहीं लूँगी तुझसे, अब तो छू   देख बाबू ये मेरी तरफ देखता भी नहीं , अब तू ही बोल कौन सी दुनिया अच्छी, ये दुनिया या वो दुनिया   फिर क्यूँ न आऊ इस शमशान पर । ------------------------------------------------------------ पूरा नाटक यहाँ निशुल्क ई-बुक में उपलब्ध है  https://www.scribd.com/doc/245544043/Antim-Ujala