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Showing posts from August, 2011

प्रकृति का महाकुम्भ

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फिर आया धरा पे छाया पृथ्वी हो रही सम्मोहित मन हो रहा उत्तेजित गंगा से अपार ये वर्षा की धार प्रकृति का उपकार आओ भिगो पाप धो पुण्य लो शांति हैं अपूर्व प्रकृति का महापर्व भाग लेता सारा जग मानव पशु और खग फूटते हैं अंकुर बजते हैं साज़ मधुर नदियों में बहता तालो में रहता सुख दुःख संग सहता अगर पृथ्वी कुटुम्भ हैं तो ये प्रकृति का महाकुम्भ हैं सब पे एक समान ये जीवन की पहचान ये रगों का राग बुझाता तृष्णा की आग ये जीवान का महर्षि ये योवन की उर्वशी ये अरमानो का प्रतिबिम्ब ये प्रकृति का महाकुम्भ हैं ये आत्मा की आवाज़ ये समृद्धि का राज़ ये पौधों की हरयाली इंसान की खुशहाली नए रंग में नए रूप में कभी रात में कभी धुप में ये रास्ता हैं जीने का सावन की ये मेनका ये जीवन की आभा सौन्दर्य में रम्भा ये जीवन का प्रतिबिम्ब ये सपनो का कुटुम्भ ये प्रकृति का महाकुम्भ : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

पत्थर बना दिया

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जब ठोकर लगी तुझे तो रास्ते का पत्थर कह दिया तू रास्ता थी भटकी और जहा से गुज़री वो मेरा आशियाना था याद हमने दिलाय तू कहा जा रही थी और तुझे कहा जाना था तेरी चोटों की नुमाइश हुई मेरे ज़ख्मो को छुपाने का रोज़ एक नया बहाना था तेरी हर खता माफ़ होती जफा माफ़ होती जो खंज़र पीठ पर चलाया उसे सिने पे चलाना था मेरे आह्सानो का यही सिला दिया मैंने ये नहीं चाहा कोई मुझे देवता समझे पर तुने तो पत्थर बना दिया : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

दो आशीर्वाद विजयी भवः

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रणभेरी हैं गूंज रही रक्त रंजीत खड़े हिमगीरिवर मिल्नोतसुक शत्रु हैं यही कालकुठ बहता रगो में हे माँ विभ्रंस होने दो कृतांत का कहर टूटे निर्दोष को न रोने दो हे मातृभूमि दो आशीर्वाद विजयी भवः कुलिश काल बने कूल न रहे शेष कूल न हो कोर न कोई कपटियो का कौर होने दो हे मातृभूमि दो आशीर्वाद विजयी भवः वह प्रमाद में खोया हैं की महावीर अभी भी सोया हैं स्वप्न हैं की याचक बने हम जिधर देखे उधर हो तम हे माँ हमे भी त्रिनेत्र होने दो केसरी को न सोने दो हे माँ विभ्रंस होने दो फनी अब फन काड़े विषधर विष से मरे इसा बुजंग को कुचने दो हे मातृभूमि दो आशीर्वाद विजयी भवः हर कोई अंगार बने असुरो का हम काल बने धरा या समीर हो फैला दैत्यों का रुधिर हो दूरमती की दूरगती हो यम हम हो हे माँ फिर लंका दहन होने दो विधवंश होने दो हे मातृभूमि दो आशीर्वाद विजयी भवः : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved