अभिनन्दन
ये सोने चांदी का महल नहीं ये मेहनत की परिभाषा हैं जब भारत भारत से लड़ता हैं तब तू ही सब की आशा हैं न जाती की लकीर न धर्म की दीवार आपस में इतना प्रेम यहाँ मानवता हैं परिवार बनता किसान हैं ग्वाला भी धड़कती पौरुष की ज्वाला भी माटी का मूल सिखाते हैं भोला भाला जो बचपन हैं उसको ये लौह पुरुष बनाते हैं ज्ञान यहाँ मिलता हैं अभिमान नहीं आता इनको परिश्रम इनकी आदत हैं आलस्य नहीं भाता इनको इन कोशिशो का वंदन मै दिल से करता अभिनन्दन : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved