छठ पर जाएंगे घर
कभी देश में परदेश में चाहे हो कौनों भेष में कहीं गाड़ियों में चल रहा या उम्र भर पैदल रहा सब साल भर की छुट्टियाँ वो मोतियों सी सहेजता कोई पूछ ले अगर उसे इस दौलत का करोगे क्या? बड़ी मासूमियत से कहता छठ पर जाएँगे घर भियाँ! कोई confirm पे चढ़ा हुआ कहीं RAC पे लगा हुआ कभी किसी कोने पड़ा हुआ यहाँ आँखों में जगता सूर्य है नदी का किनारा सज़ा हुआ मंद मंद मुस्कानों से सारा चेहरा भरा हुआ वो निर्जला माँ की आस है पूरे गाँव घर का विश्वास है पिता के कंधों से कंधा मिलाएगा नहाय खाय से पहले ही मेरा लल्ला घर आएगा घर तैयारियों में लगा हुआ सारी रात रात जगा हुआ यादों का भी झरना हुआ जब घर में खरना हुआ सब बैठे हैं मीठी भात खाने को मन में नयी यादें बसाने को साँसों में हलचल लिए गन्ना फल नारियल लिए वो गंगा जी तक जा रहा माँ का दौऊरा उठा रहा ये ऐसी संस्कृति ऐसी सभ्यता है जहाँ डूबते को भी प्...