मंतर चाहे जीने वाला
मंतर चाहे जीने वाला रात आसव को पीने वाला भसम करे जो ढेर से ताने दर्द हमारे सीने वाला बड़ी ही काली रातें देखीं खू को मेरे अम्ल बनाए ऐसी तो बरसातें देखी छोड़ दे मनवा रोना धोना ऐसा मैं चाहूँ जादू ढोना अंतर तक तर तर हो जाऊँ ऐसा कोई मंतर चाऊँ भाग्य का रोड़ा तोड़ सके जो सुख की नदियाँ मोड़ सके जो सांसें डर के पार चलाऊँ ऐसा कोई मंतर चाऊँ # Sainiऊवाच