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Showing posts from 2015

फेंक दे ढेला अंतरमन में

अनमने हैं ख्वाब सारे अनमनी हैं सांसें दुनियादारी हाथ लगी है कदमों को है फासें फेंक दे ढेला अंतरमन में अब की शोर मचा दें मध्म मध्म धड़कें कितना ले ऊंची नीची सांसें रात सुबह आलिंगन होगा अब की चल दे भोर देखने बरखा फिर से गीत गा रही चल जंगल में मोर देखने मन जंगल होने दो बनते हो बाग बगीचा क्यों जल कल कल होने दो पोखर में खुद को घींचा क्यों उस ओर तो खतरा है एक अंधकार में जाने का इस ओर दिलासा है जीते जी मर जाने का ‪#‎ Sainiऊवाच‬

शोर

शोर शोर शोर शोर शोर कहीं तालियों का शोर है  कहीं थालियों का शोर शोर शोर शोर शोर शोर कहीं खुशपुसाहटों का शोर कहीं दहाड़ता है शोर ये शोर शोर शोर शोर शोर दौड़ है तो शोर है  रूक गया तो शोर शोर शोर शोर शोर शोर चीख चीख कर दुआ कहीं पार्थना का शोर आसमां ये चुप रहे  जमीन का है शोर शोर शोर शोर शोर शोर दफ्तरों का शोर है  और बरतनों का शोर कभी शोर ताल दे गई  कभी शोर बेसुरी शोर शोर शोर शोर शोर बह रहा है शोर तो बदल राह शोर वोट का है शोर  तो नोट का है शोर शोर शोर शोर शोर शोर शोर की दो आंख है  कान भी हैं दो एक मुहँ उगल रहा  है बात बात शोर शोर शोर शोर शोर शोर ‪#‎ Sainiऊवाच‬

फुल टाइम लेखक की महत्ता

मानव इतिहास में हम दो तरीको से झांक सकते हैं, एक इतिहासकार के जिरए, दूसरा लेखक के माध्यम से. दोनों ही महत्वपूर्ण हैं, इतिहासकार आपको तथ्य से रूबरू करा सकता है, जैसे कोई शरीर हो कि ये आँख है, ये कान, ये दांत वगैरह वगैरह. दूसरी तरह उस काल का लेखक उस समय के समाज की आत्मा से आपको जोड़ता है और जितना आप समाज को समझेंगे उतना ही उनके इतिहास को समझना आसान होगा. किताबें महज किताबें भर नहीं ये "टाइम मशीन" हैं, जो आपको काल यात्रा कराने में सक्षम है जैसा कि मुझे प्रेमचंद और टैगोर पढ़ कर लगता है, आपको भी लगा होगा शायद. मैं यह दावा नहीं करता कि मैं आपने वाली पीढ़ियों के लिए वर्तमान काल का बिम्ब छोड़े जा रहा हूँ, मगर कोई और तो ये बिम्ब गढ़ ही रहा होगा कविताओं से, नाटकों और कहानियों से, फ़िल्मों से. आज हम पुराने दौर की किताबें पढ़ कर उस दौर को महसूस कर पा रहें हैं, समझ पा रहें है कि समाज का विकास कैसे हुआ और जब हम समाज का विकास समझते है तब हम ये भी समझ रहे होतें हैं, कि मानव विकास कैसे हुआ (मैं यहाँ शारीरिक विकास की बात नहीं कर रहा). जब उस दौर के लेखकों ने अपनी रातें काली की तब जा कर हमे

सन्नाटा अंकुर फूटेगा

रैन जगू मैं, दिन सो जाऊं  इक सन्नाटे की बात बताऊँ  सन्नाटे में इक बीज पड़ा है  भाग भाग के खीज पड़ा है  दफ्तर दफ्तर माटी डाले  कटपुतली बन बात दबा दें  सन्नाटे से दूर रखा है  हमको चकनाचूर रखा है  नैन रैन हो आए जब  बूंद बूंद बरसाए जब  गम का दरिया छुटेगा  सन्नाटा अंकुर फूटेगा     जब रैन दिवानी आएगी  ख्वाब फसल लहराएगी  अक्षर  शब्द  लुटाएगी गीत  कहानी  गाएगी  ‪#‎Sainiऊवाच‬

स्याही की जादूगरी

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कभी आंसू कभी मुस्कान कभी मन की उधेड़बुन कोरे कागज़ों का सन्नाटा  जिसे अकसर नहीं भाया कभी रंग लिखती है कभी खुश्बू लिख डाले कभी चहकन सुनाती है  कभी थिरकन पिरोती है  स्याही की जादूगरी को  दुनिया गुलज़ार कहती है जन्मदिन पर सत-सत नमन करूँ मैं कलम छोटा सी ‪#‎Sainiऊवाच‬

मेरी किस्मत में पत्थर था

कभी रोना नहीं आया  कभी हंसना नहीं आया  मेरी किस्मत में पत्थर था जिसे धड़कना नहीं आया ------------------------------------------------- हाँ! मैं भी बिकाऊ था  मुझे बिकने की चाहत थी  एक मुस्कान के बदले  हम दिल हार बैठे थे  बाजारों में कटी उम्र  मगर बिकना नहीं आया ----------------------------------------------------------- न जख्म ठहरेंगे, न दर्द ठहरेगा  तेरा साथ देने को कोई नहीं होगा तन्हाई वफा देगी या बेवफा होगी  हमेशा साथ चलने को कोई नहीं होगा -------------------------------------------------- हसरतों के बोझ ने सर को झुकाया है  जब अदना सा खादिम भी आंखें दिखाता हो समझो हसरतों की गठरी कहीं पे छोड़ आया है ----------------------------------------------------- कभी है बर्फ सी गर्मी  कभी है आग की ठंडक शब्दों से गलत खेला हम रातें बहोत जागे ------------------------------------------------------- कभी किरदार जीता है  कभी किरदार मरता है  कलम की ये भी है खूबी कि स्याही लाल लिखती है --------------------------------------------------------

नींद के आगोश में दुनिया है

नींद के आगोश में दुनिया है  और कुछ को सपने सोने नहीं देते ----------------------------------------- पुरानी रूकावटें हटाई तो नई से दोस्ती कर ली  बहाने बंधने के ढूंढता रहता हूँ  मैं चाह के भी हवा हो नहीं पाता ----------------------------------------- नशा हजारों का कुछ सौ का इलाज भी महंगा लगे खुद से इतनी बेदिली क्यों  सैनी लौट चलो ये आग कुछ नहीं देगी ----------------------------------------- कवि हुआ है ढोंगी अब ढोंग करेगी कविता  सम्मानों की लीपापोती  स्मृति चिह्नों का आडंबर  भाव की गठरी नहीं खुलेगी  ढोंग करा कर ढोंग बिकेगी ----------------------------------------- वर्तमान था पड़ा निढ़ाल  जकड़े उसको भूतकाल  अब भविष्य की बेड़ी बनता  वर्तमान हो रहा भूतकाल #Sainiऊवाच

हम दिल को अनसुना करते गए

दिल के सवालों का कोई जवाब न था  हम दिल को अनसुना करते गए ------------------------------------------------ कुछ यूँ है जिंदगानी न ख्वाब न कहानी  न ठोर न ठिकाना  मुकद्दर है बहे जाना  इश्क़ की लकीरें  हाथों में बहुत ढूंढी जो था ही नहीं  उसे ढूंढते हैं  हम भी बड़े हैं जाहिल होश बना दुश्मन  मयखाना मेरा साहिल ------------------------------------------------ जब जिस्म चाहेगा तो हार जाए सैनी  रूहानियात की चाह मुझे पागल बनाएँ जाती है ------------------------------------------------ प्रेम की परिधि में  बंधने को आतुर मन वर्ष बीते जा रहे हैं  स्पर्श के अभाव में  हृदय कब से प्रार्थी है  वरदान तुम न दे सको तो शुष्क होने का अभिशाप दे दो #Sainiऊवाच

आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है

किताबों में ज्ञान भी होता है ये जरा देर में मालूम पड़ा हमको। माजरा कुछ यूँ है कि हमें बचपन में नींद जरा ज्यादा आती थी। जबरन स्कूल भेजने का नतीजा ये हुआ कि हमने अनजाने में यह जान लिया कि आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। हमने गुस्से में किताबों की ओर देखा तो हमें ज्ञात हुआ कि इनका तो बिस्तर भी बनाया जा सकता है। हमने आव देखा न ताव बस्ता उठाया और स्कूल के पीछे वाले खेत में घुस पड़े, पेड़ के नीचे अपन आसन जमाया और चैन की नींद ली। आवश्यकता और उसके बाद किया गया आविष्कार कभी कभी आपका पिछवाड़ा भी लाल कर सकता है। हुआ भी यही जैसे माँ को हमारे आविष्कार के बारे में एक भेदी ने बताया, माँ भड़क उठी। और माँ ने फैसला किया कि हमें बच्चों पर वर्षों से प्रयोग होने वाले आविष्कार माने बेंत से भेंट कराने का अवसर आ गया था। अंततः लाल हमारी भी हुई और हमने यह सीख कि आविष्कार हमेशा दूसरे के सामान पर करें। ‪#‎Sainiऊवाच

स्वप्नों की परिधि क्या है

स्वप्न कहाँ पर स्वप्न हो कैसा  स्वप्नों की परिधि क्या है  यथार्थ छूटेगा  नींद चलोगे  स्वप्न चुनेगा  अपना शिकार  राह अगर तुम  थक जाओगे  गिर जाओगे  मर जाओगे  स्वप्न मरेगा किन्तु ना स्वप्न यथार्थ होने का इसको यह प्रेत बहोत बलशाली है  फिर से कोई नींद चढ़ेगा  स्वप्न नया शिकार चुनेगा  जिसे प्रेत स्वप्न लग जाएगा  न सुध होगी न नींद ही होगी  मन जितना बलवान रहेगा स्वप्न यथार्थ छू पाएगा  जो कमजोरों पर आती है  वो स्वप्न नहीं बस भ्रांति है  लालसा पर आवरण स्वप्न का चार थपेड़ों में वो अपना  रूप सही दिखलाएगा जो कमजोर हृदय रखता हो स्वप्न नहीं जी पाएगा : शशिप्रकाश सैनी