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Showing posts from July, 2014

राह मन की

राह मन की मुश्किल बहोत फिर क्यों डटा हुआ? मोड़ सन्नाटे से भरे भय चेहरे से छलकता हुआ मंजिल दूर पाँव जख्मी निशान खून के पर चाहता था अब पैर भी नहीं चलोगे कैसे ? कोने में टूटी सी वो चीज क्या है ? अच्छा ! तुम्हारा हौसला है तुम बहादुर थे ना जिद वाले जिद्दी फिर टूट क्यों गए उठो और लड़ों क्या महादेव में आस्था बस नाम भर की है कुछ सीखा नहीं क्या ? हलाहल पी कर जीना पड़ता है अमृत हलाहल बाद ही निकलता है पहले हलाहल पियो तो सही भागते क्यों हो :  शशिप्रकाश सैनी

Flyover प्रेम

आज बहोत थका हुआ था, सोना चाहता था अभी भी आंखों में नींद है, पर एक बार फिर से शकरपूर फ्लाईओवर पे बैठा हूँ और घड़ी बता रही है कि पांच बजने को है। लगता है यह फ्लाईओवर हमारे प्यार में पड़ गया है देखिए जबरदस्ती मुझे बुला लिया, बिजली कटवा कर हद है। बड़े वक्त से तमन्ना थी कोई हमारे प्यार में पड़े हम किसी के प्यार में पड़े, पर यह तो भगवान ने हद ही कर दी, कोई लड़की नहीं बची थी क्या? सीधे फ्लाईओवर को हमारे इश्क़ में डाल दिया। भगवान न हुआ कपिल शर्मा हो गया बात बात पर मजाक, आपको दर्शक बना दिया मेरी जिंदगी को "Comedy Life with God"। हाँ माना हम सब उसकी कठपुतलियां हैं पर इसका मतलब यह नहीं कि पूरी फिल्म में मुझसे Comedy sequence ही कराए जा रहे, यार कुछ Romantic scene डाल देते कुछ Stunt type, Stunt type इसलिए कि जो हमारा आकार है उस हिसाब से हम सिर्फ खाने या सोने के साथ Stunt कर सकते हैं, सोने से याद आया चार-पाँच Bedroom scene भी डाल दो, प्लीज भगवान अब तो दाढ़ी भी पकने लगी है कब डालोगे Bedroom scene। उम्र बीती जा रही है और चंद्रगुप्त ने भी हमारी script में बस comedy लिखी, अइसा है गुरु ज

Love at first sight By Akanksha Dureja

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पिछलें दिनों मन में एक विचार आया क्यूँ ना हम भी अपने ब्लॉग पे गेस्ट पोस्ट शुरू करे, ये विचार आते ही हमें आकांक्षा जी की याद आई, जो हमारी अच्छी मित्र और ब्लॉगर होने के साथ साथ कवयित्री भी हैं. जैसे ही हमने उसने अनुरोध किया उन्होंने हामी भर दी और आज देखिए इतनी सुन्दर अंग्रेजी कविता भेजी है और साथ ही लन्दन की तस्वीर भी. पढ़िए और आनंद लीजिए. आकांक्षा जी को और पढ़ने का मन करे तो ये उनका ब्लॉग  Direct Dil Se .  For me it was love at first sight  And you reciprocated for my delight Days were rainbows, Written with vows Spring coloured my life shiny and bright. Letting myself go wasn't easy I flew with your thoughts so breezy Spellbound by the Thames, I made new aims With you, even the clichés didn't seem cheesy. I still remember that night so starry I was drunk on life, don't blame the sherry In your arms, with your charms It felt so right like a happy love story. Like all good things, it didn't last My heart will forever be in y

इश्तिहार

आज एक बार फिर शकरपूर फ्लाईओवर का रूख किया है, बार बार यहाँ क्यों आता हूँ शायद बनारस के घाटों की याद खींच लाती है, तुलना तो मुमकिन ही नहीं इस फ्लाईओवर और मेरे चेत सिंह घाट की, 'मेरा' लागाव वश बोल रहा हूँ अधिकार से नहीं। यहाँ गंगा नहीं यमुना भी कुछ दूर पर है, शोर बहुत है यहाँ, हाँ यह खुला आसमान उस जिंदगी को याद करने मे मदद तो करता ही है, शायद इसलिए आ जाता हूँ यहाँ। सड़क की उस पटरी पर दो लोग इश्तिहार पर इश्तिहार चिपका रहे हैं, CET के इश्तिहार के ऊपर B.Ed का इश्तिहार चिपकाया जा रहा है। बस जिंदगी भी कुछ ऐसी ही है आप सारी उम्र अपना इश्तिहार बनाने में लगे रहते हैं, किसी तरह खींच खाच कर गर आपने अपना इश्तिहार लगा भी दिया तो अगले ही दिन कोई आएगा गोंद लगाकर अपना इश्तिहार चिपकाता जाएगा, उसका भी इश्तिहार कुछ ज्यादा दिन नहीं टिकना वहाँ पर, यहाँ हर शेर पर सवा शेर मौजूद हैं। आखिर हम और आप हैं क्या किसी दीवार पर हजारों इश्तहारों के नीचे दबे इश्तिहार ही तो हैं और बजार में रोज नए इश्तिहार आते हैं और हम दबते चले जाते हैं। क्या कहा! आपको हजारों इश्तहारों में इश्तिहार नहीं बनना, तो कुछ अलग क

मैं न बदलूँ अगर तो

मैं न बदलूँ अगर तो वो हैं कहती ढीट हो तुम और जो चाहूँ बदलना मोम की भाँति बने तुम जो झुके वो रीढ़ कैसी अब की फंसी जान सांसत धार पे मुझको चलाएँ हाँ मैं कह दू, तो फंसू मैं ना मैं कर दू, तो है आफत मुझे कुछ अब सुझता ना जब मिले थे बार पहली हर अदा में प्यार था जी रंग कुछ यूँ है बदला जो शब्द कभी चाशनी थे  आज नीम की कौड़ियाँ है : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध Click Here //