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Showing posts from January, 2014

मेरी रजाई मेरा तकिया

तुझसे भली  मेरी रजाई मेरा तकिया इन्हें गर्म कर दूँ  तो गर्माहट बनी रहें  जब तक हू इनके साथ  ये मेरे बस मेरे  तेरे जैसी नहीं  ख्वाबो और ही आहट बनी रहें  शराब और शबाब दोनों ने दगा किया  इस सर्द रात में  कोई काम आया तो बस यही एक मेरी रजाई दूजा मेरा तकिया जाम की सब ख्वाईशें, बोतल में रह गई  हम तेरे मोबाइल में मिस कॉल बन गए : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

आज फिर छला हैं तुने मुझे

आज फिर छला हैं तुने मुझे  मैं जगता रहा  नींद आँखों में आने न दी और तू गुजर गई  आए ख्वाब कई  मैंने ख्वाबोँ से किनारा किया ये वक्त तुम्हारा किया  और तू गुजर गई  दिन से नाराजगी की  तुम्हे मनाने में  जुगनुओं से दोस्ती की  तुम्हे मनाने में  बरबाद-ए-जिंदगी की  तुम्हे मनाने में  और तू गुजर गई  तेरी हर बात ने छला हैं मुझे  फिर इस रात ने छला हैं मुझे नजर से उतरतें उतरतें तू दिल से उतर गई अंधेरा लकीरों में दे तो पूरा दे  ये भी क्या बात की एक रात में गुजर गई : शशिप्रकाश सैनी  //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

कहीं वो दरिंदा मैं तो नहीं

आज ठिठका मैं  सुरत अपनी आईने में देख कल रात जिसने लूटी इज्जत कहीं वो दरिंदा मैं तो नहीं जब उसने करी छेड़खानी मैंने नजरे फेरी मेरे खून से सने हाथ  कहीं वो दरिंदा मैं तो नहीं आज फबतीयां कसी उसने मैंने कहा छोड़ो जाने दो प्रतिकार करने से रोका था मैंने कहीं वो दरिंदा मैं तो नहीं कमर से पकड़ी गई वो  मैं बुत बना रहा कि अनजान थी वो मेरी खामोशी दरिंदो की हिम्मत हुई  कहीं वो दरिंदा मैं तो नहीं आज उसके कपड़ों पे  मैंने कहाँ , ये न पहना करो उंगली मैं उस पे उठा आया कहीं वो दरिंदा मैं तो नहीं जब भी कुछ गलत देखो  आवज उठाओ रोको हैवानो की हिम्मत न बनो कल को अपने चहरे में, कोई दरिंदा न दिखे : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

रात को उलझाए रख "सैनी"

रात को उलझाए रख "सैनी"  ये रात फिर आनी नहीं आज जाम में नशा नहीं  पलंग की सिलवटो में कोई कहानी नहीं रात को उलझाए रख "सैनी"  ये रात फिर आनी नहीं तुझे बरगलाने को उम्मीद नहीं  चारो ओर अंधेरा, ख्वाब आसमानी नहीं  रात को उलझाए रख "सैनी"  ये रात फिर आनी नहीं दोस्त दुश्मन हमसाए कोई नहीं  आज किसी पत्थर को फिर बात समझानी नहीं  रात को उलझाए रख "सैनी"  ये रात फिर आनी नहीं कल की, कल की, कल की  कल की क्यों बात करे  बात करे आज की  आज क्या जिया, कितना जिया राज को राज रख "सैनी" इस रात की बात किसीको बतानी नहीं  रात को उलझाए रख "सैनी"  ये रात फिर आनी नहीं : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

रोटी का इंतजाम

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"न घर कोई, न घर कोई, न घर कोई" वो रुआसा रहा कटोरा लिए कुछ तो सिक्के गिरे दो रोटी का इंतजाम कुछ इस तरह होगा "नगर कोई, नगर कोई, नगर कोई" मन में उसके उमड़ते रहे ये शब्द कंधे पे झोला लिए सामान का चले वहाँ जहाँ फायदा होगा " न डर कोई, न डर कोई, न डर कोई" लाठी पटकता वो चिल्लाता रहा नींद वालों को सुनाता रहा उसकी रोटी का यही कायदा होगा "न नर कोई, न नर कोई, न नर कोई" वो समझाता रहा खुद को हर हत्या के बाद ऐसी रोटीयों का अंजाम क्या होगा "न भर कोई, न भर कोई, न भर कोई" गली गली घूमें चिल्लाए, पाप से दूर रह पुण्य कमा, अपनी रोटीयां पुण्य में गिनाता है झोला उसका आज पूरा भरा होगा : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

उस कोने से कराह आई

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This post has been published by me as a part of the Blog-a-Ton 45 ; the forty-fifth edition of the online marathon of Bloggers; where we decide and we write. To be part of the next edition, visit and start following Blog-a-Ton . तू मेरा दर्द क्यूँ बता आई, उस कोने से कराह आई जख्मों की नुमाइश की जिसने, बस उन्ही तक निगाह आई हवाओं ने दगा की, पत्तियां उड़ी, डालियाँ टूटी, पेड़ उखड़े एक पल के धोखे में, जिंदगी सब कुछ गवा आई तिनको से बना घोंसला, आज फिर तिनका हुआ आसमां से जमीं हुए, गुरुर को औकाद जिंदगी दिखा आई टूटे घोंसलो को फिर बनाएँगे, तिनका तिनका फिर आशियाँ होगा लड़कियों को तोड़ा, हौसले तोड़ सके ऐसी न हवा आई तूफान के बाद की रात, सर्द ज्यादा हैं दर्द ज्यादा हैं हौसला बांध नजर आसमां पे रख, देख एक नई सुबह आई                         : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here // The fellow Blog-a-Tonics who took part in this Blog-a-Ton and links to their respective posts can be checked