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Showing posts from August, 2013

रूपया रोए रूंदन राग

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रूपया रोए रूंदन राग सत्ता सुनना चाहे ना  डालर में कुर्सी हैं गाती आम ही जनता रूपया पाती क्या बच पाए क्या घर लाती कोयले का काला चिट्ठा जब मन करता था खट्टा सब 2 जी 3 जी सारे जी जी दस्तावेज पचाना कितना इजी जब करती रखवाली कुर्सी  खाद्य सुरक्षा मायाजाल  माया इनको जाल हमें  कर देंगे कंगाल हमें  फिर कर्जा ये सर पे डाले  दस बोरी में चार निवाले  साठ साल से वाद दे  न एक रूपईया ज्यादा दे गर भुख मिटेगी कपड़े होंगे  शिक्षा स्वास्थ्य सड़क मांगेंगे  न जाने कितने लफड़े होंगे : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

हो रहा भारत निर्माण

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रुपया गिरता निकले प्राण  डॉलर कब से मार रहा हैं  सौ तक अब जाना आसान  फिर भी अकड़े झूठी शान हो रहा भारत निर्माण  अब तक बोले जाना नहीं  भूखे मुह में दाना नहीं वोट के बदले दू सामान  कांग्रेस खोले खाद्य दुकान हो रहा भारत निर्माण  फौजी का सर कट जाए  मुह से फूटे बोल नहीं और आतंकी मारा जब  खड़े हुए है इनके कान  हो रहा भारत निर्माण  सुखी हैं बंजर हैं  चारो ओर ये मंजर हैं  खेतो में अब फसल नहीं  पेड़ो पे लटके किसान  हो रहा भारत निर्माण  जो तलवारे भाज रहे न अमर जवान की लाज रहे  उन पे ऊँगली एक नहीं निहत्थो पे गोली बाण  हो रहा भारत निर्माण  घोटाले पे घोटाला  नए नए जो काण्ड किये  पिछला लगता छोटा सा करते सारा सीना तान  हो रहा भारत निर्माण  पप्पू बोले भूख नहीं हैं कपड़ा रोटी धुप नहीं हैं निर्धनता मन में बसती हैं इसको ना तू तन का जान  हो रहा भारत निर्माण  जो महीने तक चलती थी  बिच राह में दम तोड़े  तनख्वाह आंखे नम हो रे  दानी जो थे मांगे दान  हो रहा भारत निर्माण  इतने पे ना माना हैं इसको देश डूबना हैं 

प्याज ही प्याज हैं दुनिया मेरी

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प्याज ही प्याज हैं दुनिया मेरी  इसके स्वाद का तलबगार हूँ मै  खूब पहचान लो शक्ल इसकी कहता थाली में मुश्किल दीदार हूँ मै  न रास्ते में आओ, ये प्याज काट देगा  कहती जेब पे चलू तलवार हूँ मै  मै अमीरी का शौक़ हूँ गरीबो से मुझको हैं क्या  उच नीच मुझमे बहोत, लोग कहते बिमार हूँ मै याचनाओ से पिघलू नहीं  पत्थर हूँ दिवार हूँ मै बरसात में पकौड़ो में नहीं आऊंगा मै तू इस पार खड़ा, तो उस पार हूँ मै शराबो पे नोटों पे अब की बेचना न वोट अपने  फिर न कहना बढती कीमत का गुनाहगार हूँ मै जिसको चाहो दे दो देश की सियासत " सैनी" कठपुतली से देश न चले इतना तो समझदार हूँ मै  : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

आठ से आठ की सीफ्ट

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Photo Courtesy आठ से आठ की सीफ्ट में  भावनाएं उलझी  कविताओं पे छाई उदासी हैं  कलम मेरी प्यासी हैं  अब समझें हैं सन्डे त्यौहार क्यों लगे  हफ्ते दर हफ्ते हर बार क्यों लगे मशीन से इन्सान हो जाते हैं  मन से मुस्काते हैं  कलम अब चलेगी  अपनी सुनेगी  भावनाएं जीएगी कविता करेगी  इसे पहले की  फिर मशीन हो जाए  मनडे आए  घड़ी की सुईया बन  टिक टिक गाए ठन के अपनी करे गोते ताल में  हवाओं में उड़े मन की मर्जी ने थिरकें : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

कहानी कुर्ला की

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आम आदमी घबराता बहुत हैं और हमने भी अब तक खुद को आम आदमी ही माना हैं, खैर लोगो ने हमें सांड, पहाड़, डाइनोसोर और न जाने क्या क्या कह ये जताने की कोशिश की, की हम आम तो हो सकते हैं आदमी नहीं. पर हमने खुद को आम आदमी मानना नहीं छोड़ा. खैर बात ये नहीं की हम आदमी हैं की नहीं, बात ये हैं की आम आदमी घबराता हैं की नहीं. तो जनाब आम आदमी घबराता हैं और क्या खूब घबराता हैं, जिससे घबराता हैं उसको उपाधि भी दे देता हैं "कभी शैतान बना देता हैं कभी भगवान बना देता हैं" जी जनाब भगवान भी , बिना डर के इनका भी धंधा नहीं चलता. लोग भगवान भरोसे चलते हैं और ये डर के भरोसे. खैर ऐसा भी नहीं की आस्था नाम की कोई चीज ही नहीं, पर बहुत हैं जिनकी चाभी डर ही हैं. भूमिका बहुत बना ली अब असली मुद्दे पे आते हैं , जिसने इस कवि को कहानी लिखने पे मजबूर कर दिया. ॐ कुर्लाया नमः  (कुर्ला मुंबई में एक स्टेशन हैं जहा लोकल ट्रेने रूकती हैं) ये किस्सा हैं कुर्ला का, कुर्ला की लोग इज्जत बड़ी करते हैं, अब ऐसा भी नहीं इसकी वजह प्यार मोहब्बत हो. इसकी बस एक ही वजह हैं और वो हैं खौफ, कुर्ला का खौफ. अच्छे ख

बनारस मेरा गुरु

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आज फोटोग्राफी दिवस पे  शुक्रिया कहू  बनारस मेरा गुरु  चाहे कैमरा उठाऊ  या कविता करू इस अनाड़ी में ललक जगाने के लिए  घाटो तक खिच लाने के लिए सुबह कितनी सुहानी  शामो की रंगीनियाँ दिखाने के लिए जिंदगी का हर लम्हा कैद किया  जब मै फोटोग्राफर हो के जिया  तस्वीरो में  छुपा के  वक़्त से बचा के  मै यादे बटोर लाया हूँ पोटली बना के  मेरे कैमरे का  सबसे ज्यादा ठिकाना रहा  वो घाट चेत सिंह  जिसका मै दीवाना रहा तस्वीर खिची ही नहीं जी मैंने  तेरा ही सीखना रहा शुक्रिया घाट का चाट का गलियों का  और गंगा का  इस नौशिखिये को हौसला दिया  मै बनारस हर लम्हा जिया  : शशिप्रकाश सैनी  //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

मै और मेरी बेरोजगारी

मै और मेरी बेरोजगारी  अक्सर ये बाते करती हैं  तुम होती तो ऐसा होता  तो होती तो वैसा होता  जेब मेरी भी पैसा होता हम भी डालते Status 1st Salary का दोस्तों को Treat दी होती  जिंदगी कुछ यूँ होती हमने भी उड़ान भरी होती  मै और मेरी बेरोजगारी  अक्सर ये बाते करती हैं  अगर हाथ मेरे नौकरी होती हम भी डरते Monday से  Sunday से होते खुश पाया मैंने क्या खोया हैं क्या क्या  एक किताब और शब्दों से न भरता पेट यहाँ  मै और मेरी बेरोजगारी  अक्सर ये बाते करती हैं : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

जब से प्याज अमीरी का पैमाना हुआ

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जब से प्याज अमीरी का पैमाना हुआ तब से बस तस्वीरो से बहलाना हुआ आँखों को आंसू देता है वो सुना था कभी प्याज कटे रुलाए वो घडी आए जमाना हुआ पकौड़ो से रूठा परैठो से नाराज अब तक इनको प्याज से मुश्किल मिलाना हुआ प्याज सांप्रदायिक हैं इनसे दूर ही रहो ऐसी बातो से मन को बरगलाना हुआ मोहल्ला जान न जाए कल को डाका न पड़े प्याज तरबूजो कद्दूओ में भर के लाना हुआ प्याज प्यार सब ढाई अल्फाज़ हैं "सैनी" ढाई ने ढाया गजब दिल ही दुखाना हुआ : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

माटी कर चला

किस्मत हैं खफा  क्या मेरी खता जख्मो के सिवा  कुछ  भी  न मिला पत्थर कर दिया  दिल जो था मेरा  जब धड़कन बढे मिलता फासला माटी हैं माटी हैं  माटी हैं अरमा  माटी  कर चला  अपने दर्मियां बदला क्या नया  ये कैसी हवा चुभती हैं बता ऐसा क्या हुआ इतनी दूरियां जब धड़कन बढे मिलता फासला माटी हैं माटी हैं  माटी हैं अरमा  माटी  कर चला  इश्क-ए-रास्ता दर्द-ए-मंजिले जब बस्ता हैं घर लगे दुनिया की नज़र आँखों से बहा  गम ही गम मिला  जब धड़कन बढे मिलता फासला माटी हैं माटी हैं  माटी हैं अरमा  माटी  कर चला  फिर जब दिल हुआ  धड़कन ने कहा आँखों को दिखा  झूठे ख्वाब ना  सब झूठे जहाँ  अब ना हौसला जब धड़कन बढे मिलता फासला माटी हैं माटी हैं  माटी हैं अरमा  माटी  कर चला : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

अरमान दिल घुले भी कही हम पिघल न जाये

अब हाथ ना लगाओ कही आग जल न जाये  अरमान दिल घुले भी कही हम पिघल न जाये  रहते सुस्त कब तक तुम रफ़्तार तो बढाओ कब तक चलोगे धीमे फुरसत निकल न जाये  दुनिया बहुत हैं शातिर सब खेल जानती हैं अब तो नजर उठाओ कही ख्वाब छल न जाये दिल में इश्क़ छुपा जो उसको जुबाँ पे लाओ  कही लफ्ज ढाई कहते उम्र ढल न जाये जब होश मय का तारी सारा बयाँ बताओ नशा कम हुआ तो "सैनी" संभल न जाये  : शशिप्रकाश सैनी  //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

उस पार हम नहीं

मुझ में दफ़न करे कोई अनारकली को  इतनी भी खुशकिस्मत दिवार हम नहीं  हाँ ना कुछ तो कहो होठ हिलाओ तो सही  ख़ामोशी समझे इतने भी समझदार हम नहीं  इकरार न सही इन्कार तो करो  कल कुछ हो गया तो खतावार हम नहीं  न तेरी तलब में बैठे हैं न इन्तेजार में न मर्ज अब रहा बीमार हम नहीं  चुभती रही कानो में वो आवाज हम रहे किसी साज का न साथ झंकार हम नहीं मझधार में "सैनी" लड़ना हैं मुक़द्दर  जो डूबेंगे बिच राह तो उस पार हम नहीं  : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

अब छुपा लो बात कल बात छुपाये न बने

रौशनी नाराज रही अब तक साये न बने  ना अँधेरा समझे बात मेरी निभाये न बने  घाव माथे तक फैले नजर न आने लगे अब छुपा लो बात कल बात छुपाये न बने  फिर वही रोना रहा दिल की कोई कीमत नहीं हकदार कोइ आ पड़े हक़ फिर जताये न बने चाहू कितना मगर होठ हिलते ही नहीं  दिल इतना दुखा और मुस्कुराये न बने  किसने चलाया पीठ पे खंजर मालूम हैं हम को भरोसा रिश्तो से उठ जाए नाम बताये न बने अब तो चलो की छोड़ दो कुछ यहाँ रखा नहीं  रूह छोड़ेगी साथ जब कब्र से जाये न बने एक ने चाहा नहीं तो दूसरी तो है अभी "सैनी" और गिनने चलो तो गिनतियाँ गिनाये न बने  : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

मांगो वत्स क्या मांगते हो

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This post has been published by me as a part of the Blog-a-Ton 40 ; the fortieth edition of the online marathon of Bloggers; where we decide and we write. To be part of the next edition, visit and start following Blog-a-Ton . The theme for the month is "MAKE A WISH" रात स्वप्न में , प्रभु थे खड़े बोले मांगो वत्स क्या मांगते हो जमीं चाहते हो या आसमां चाहते हो बड़ी गाडी , बड़ा घर , नोटों की गट्ठर या सत्ता सुख कुर्सी से हो कर जो चाहो अभी दे दूँ एक नयी ज़िन्दगी दे दूँ मैंने माँगा तो क्या माँगा एक बेंच पुरानीं सी वो पीछे वाली मेरे स्कूल की चाहिए मुझे वो बचपन के ज़माने दोस्त पुराने मदन के डोसे पे टूटना चेतन का वो टिफिन लूटना अपना टिफिन बचाने में टीचर क्लास सभी को भूले हम मस्त थे खाना खाने में मुझे वो होली चाहिए ओ एन जी सी कॉलोनी चाहिए वो ठंडाई वाली ट्रक वो लड़कपन की सनक एक दुसरे का फाड़ते हम कुर्ता अनिल मेरे दोस्त ये वक़्त क्यों नहीं मुड़ता गुरप्रीत के घर वाला रास्ता मेरा टूयूशन मेर

लमही के नवाब "मुंशी प्रेमचंद"

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लमही के नवाब  जन्मे इकतीस जुलाई १८८० धनपत राय  हिंदी जगत में हिरा नायाब  'रंगभूमि' 'कर्मभूमि' 'गबन' 'गोदान'  हिन्दी साहित्य को  मुंशी प्रेमचंद ईश्वरीय 'वरदान' कठिन शब्दों से दूर रखा सरल भाषा में 'कायाकल्प' दिया 'प्रतिज्ञा' 'बेवा' 'निर्मला' लिख हमें कृतज्ञ किया 'पंच परमेश्वर' 'सज्जनता का दंड'  'दुर्गा का मंदिर' 'ईश्वरीय न्याय' कलम जब भी चली  बस मोतिया बरसाए  जो पढ़ लेता हैं कहानियाँ आपकी  शब्द चले आते हैं पहन  तस्वीर का चोगा 'गुप्त धन' 'पूस की रात'  'नमक का दरोगा'  'दुनिया के सबसे अनमोल रतन'  'उपदेश' 'बलिदान' 'बेटी का धन' 'सेवा सदन' 'बूढी काकी' 'पुत्र प्रेम'  'लौटरी' 'नशा' 'कफ़न' 'अदीब की इज्ज़त'  'बड़े भाई साहब' 'प्रेमा' 'किसना' 'रोतीं रानी'  'परीक्षा' 'अग्न