Posts

Showing posts from May, 2013

हम तुम और इंडीब्लॉगर

Image
( इंडीब्लॉगर का अनुभव) होठो पे हँसी मेरी जानते हो क्या है इंडी मीट का अनुभव है न कोई कारण दूसरा है इंडी ने पुकारा ब्लॉगरो की फौज हुई हम से मिले तुम क्या खूब मौज हुई ज़िन्दगी के स्वाद में कारण तुम भी हो इंडी तुम मेरी खिचड़ी में नमक हो कभी मीठा हो थाली का स्वाद ब्लॉगो का उतार जुबा तक लाया गुलदस्ता सजाया लाया फुल हर डाली का (कनेक्टेड हम तुम) आइना मेरा बोलने लगा तो क्या होगा राज खोलने लगा तो क्या होगा आईने से अपने डरता हू की ये जनता है मुझे असली शक्ल में कल को दुनिया न जान ले और ये छह औरते अपना आइना साँझा कर रही है दुनिया से न डर रही है एक पल को लगता है ये समझदार नहीं है फिर आता है ख्याल कितनी हिम्मत लगी आम आदमी की बुजदिली ही इसे आम रखेगी खास होने के लिए कुछ खासियत दिखानी पड़ेगी जिंदगी पे अपनी कैमरा लगाना आसान नहीं हम तुम जानते है अपने डर से डर भागा जाना कोई समाधान नहीं स्क्रीन पे चल रहे थे कुछ पल जैसे अपनी ही हो जिंदगी अपना ही हो घर गुल

ज़िन्दगी में वो मौज नहीं रही गुरु

Image
बहुत दिन हो गए  कैमरा उठाया नहीं  इस कवी ने भी  कुछ ख़ास फ़रमाया नहीं  घाट चाट गलिया गंगा  यहाँ नहीं ना  न लस्सी मिली न रबड़ी  कचौरी मिली ना  कुछ दरख्तों से दोस्ती थी  मुलाक़ात रोज की थी  महुआ से आम से  पीपल से बोलते थे   यहाँ आदमी भी बोलता है  तो बोलता है काम से  क्या बोलेगा महुआ और आम से  ठठेरी भी छुटी चेत भी छुटा अस्सी का नजारा नहीं  न गलियों में शाम है  बस बड़ी बड़ी बिल्डिंगे है  हम मशीनों के गुलाम है  ज़िन्दगी में वो मौज नहीं रही गुरु  जब मर्जी का सूरज था  जब उठते जब चाहे  तभी होता था दिन शुरु  ज़िन्दगी में वो मौज नहीं रही गुरु  : शशिप्रकाश सैनी

न पंख बचे न पखेरू

Image
न पंख बचे न पखेरू  मै पिंजरा प्रेम बना बैठा  अब अंखिया कैसे फेरु  उससे न अब ध्यान हटे  न दिन कटता न रात कटे  जागू तो उसको चाहू  और सपनो में भी हेरू  न पंख बचे न पखेरू  गर पिंजरा उसने खोल दिया  उड़जा ऐसा बोल दिया  बंधन प्रेम बंधा है ऐसा  उड़ के कहा मै जाऊ  और जो उड़ जाऊ भाप मै बन के  बादल बन के घेरु  न पंख बचे न पखेरू  : शशिप्रकाश सैनी

कैरियर में क्रिएटिविटी आड़े आने लगी

कलम कैरियर में आड़े आने लगी  क्रिएटिव कह कह के दुनिया CV हटाने लगी  खीचते हो फोटो कवी हो तुम जाओ जर्नलिज्म में  सेल्स में तुम्हारा कोई काम नहीं ये समझाने लगी  क्रिएटिविटी से घर चलता तो क्यों करते हम MBA बच्चा समझ दुनिया हमें चाँद सितारों से बहलाने लगी  कैरियर में क्रिएटिविटी आड़े आने लगी  : शशिप्रकाश सैनी

चले है पोटली भरी लिए

Image
दो साल का खत्म हुआ सफर  हो गए है हम पुरे मनेजर  यादों के गुलदस्ते में  फूल कई लिए  हम बढ़े है जिंदगी नई लिए  यारो की यारी  इश्क-ए-खुमारी  चले है पोटली भरी लिए  चले अब चलना होगा  तस्वीरो में कविताओ में सजा के  पोटली बना के यादो की  अब मै जा रहा हू  ये जिंदगी भी खूब रही  हॉस्टल वाली  रात भर जगे  कमरा कमरा चहके  जब भूख सताए  लंका जाए  चाय की चुस्की  बन मलाई खाए  अब रातो को जब नीद नहीं आएगी  कमरे हमारे लिए खुलेंगे नहीं  वो दोस्त मिलेंगे नहीं  इसलिए मैंने कैद की  ये सारी जिंदगी  तस्वीरो में घोट के  पोटली भरी  की जब याद आएगी  खोलूँगा चखूँगा  रोऊंगा हँसूंगा ये लम्हा फिर जियूँगा खोलूँगा चखूँगा  रोऊंगा हँसूंगा : शाशीप्रकाश सैनी

थोड़ा खुद को ब्रेक दे

Image
This post has been published by me as a part of the Blog-a-Ton 39 ; the thirty-ninth edition of the online marathon of Bloggers; where we decide and we write. To be part of the next edition, visit and start following Blog-a-Ton . The theme for the month is "Break" टिक टिक टिक घड़ी के कांटे टिक टिक टिक घड़ी ये काटे दिन में सूरज बनता हू मै रातो को भी चाँद बनू मै दो कौड़ी का काम करू मै हर कौड़ी के नाम मरू मै चल चल के जूता गिस जाए न पल भर को आराम करू मै सुबह से दफ्तर नौकर था मै घर में शौहर बेटा हू कही बाप की ड्यूटी पे मै घोडा बन के दौड़ा हू मशीनी जिंदगी हो गई है पुर्जे मेरे काम करे तो ईनाम मिलेगा ईनाम मिलेगा सिक्के मिलेंगे बेटा पती पिता तभी तक अच्छा हू जब तक सिक्के है बिना पैसो के मै वो बंद घड़ी हू जो दीवारों पे सोभा नहीं देती जब किसीके काम न आती कूड़े कबाड़ में गिनी जाती दुनिया के लिए टिक टिक टिक कब तक घड़ी रहे थोड़ा खुद को ब्रेक दे अब की बासुरी बने कोई फुके फुक तो धुन हो जाऊ नजर न आऊ शरमाऊ मै गाऊ कोई