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Showing posts from March, 2013

हर शब्द में जज्बात है

खुले आम बताता हूँ न ही मै शर्माता हूँ दिल रखता हूँ धड़कन भी रखता हूँ जज्बात मै कुछ समय की बात है कविता नहीं दिल के हालात है हर शब्द में जज्बात है किसी पे दिल आया था धडकनों ने भरमाया था नहीं दबा के रखा सीने में मैंने उसकी तरफ बढ़ाया था दिल अब की अजमाया था न कविता न दोहा न गजल थी दिल था बस दिल की पहल थी न तुकांत न बेबहर ना बाबहर मै शब्दों से खेला नहीं इस पहर सीधी सरल भाषा में बात बढ़ाई जो उसको समझ न आई हाँ पे हाँ ना हो सकी वो मेरी दुनिया ना हो सकी “ सामर्थ्य ” मेरी किताब में पन्ना नंबर चालीस पे ये कविता है लिखी हुई उस रात की जब पहली बार हिम्मत करी और दिल की बात की “ ना का डर हाँ से हल्का है ” इस बिगड़े हालत में जहाँ प्यार कम हवस ज्यादा कौन जाने क्या है मन में क्या रहा उसका इरादा प्यार था या हवस ज्यादा : शशिप्रकाश सैनी

सब मुखौटा भीड़ है

सब मुखौटा भीड़ है कोई चेहरा नहीं असली यहाँ अब तक धोखा रहा इंसान का एक मुखौटा मुस्कान का कुछ मुखौटे दोस्ती के कुछ मुखौटे प्यार के इजहार के इकरार के इंकार के बिकता सब कुछ यहाँ कुछ की कीमत सिक्के कुछ की नोट हजार के सारी समझ दुनिया के लिए घर के लिए कुछ नहीं ये पहनते मुखौटा समझदारी का हाथों में खंजर लिए चलते है पीठ मिलने का इन्तजार बस ये घूमते मुखौटा लगा के वफादारी का : शशिप्रकाश सैनी 

जिंदगी तरकस में कोई तीर नया रख

जिंदगी तरकस में कोई तीर नया रख दर्द पुराने तेरे घाव कर पाते नहीं  पीठ जख्मी मेरी सीना खाली रहा  बुजदिली खंजर की सीने से गुजर पाते नहीं  बेवफ़ाई तनहाई और मिली रुसवाई  आदत बिगड़ी यूँ इनसे और डर पाते नहीं  वफ़ा की दुनिया से मेरा रिश्ता नहीं कोई  हम उनकी नहीं वो हमारी खबर पाते नहीं  : शशिप्रकाश सैनी 

अबकी मै न खेलूं होली

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रंग कैसे लगाएं कोई जादू बताए खेले किस रंग से हम होली तू पूरी रंगी आई गोरी किस रंग में यूँ लाल हुए गोरी तेरे गाल हुए एक दिवस बस मेल हुआ बिछड़े तो कई साल हुए मुझसे खेल बस आंखमिचोली अबकी मै न खेलूं होली तू रंगी हुई यूँ आई कुर्ती पे रंग है हरा चढ़ा दुपट्टा पीला पुत्वाई किस रंग से अब रंगू तुझे तेरी रंगी हुई परछाई न सूरत कर अब भोली अबकी मै न खेलूं होली अबकी जो मुझे याद किया हफ्तों महीनो बाद किया कब से बोल नहीं तू बोली बस खेले आँखमिचोली अंखियां यू तू दिखला ना रंगों से तू यूँ ढकी हुई लगे जरा न भोली होली तेरी कब की हो ली अबकी मै न खेलूं होली : शशिप्रकाश सैनी

मेरी तस्वीरे सोना हो जाएँगी

कोई सामने से चिल्लाया कोई पीठ के पीछे भीड़ में कूदे है ये कोई काम नहीं इसे बस ये तस्वीरे खीचें तिरस्कार से धुत्कार से नासमझों ने क्या क्या नहीं बुलाया हमें उस पार से   पहले थोड़ा झुलाए फिर हँसे हम तस्वीरे खीचते रहे नासमझो की नासमझी में नहीं फसे ये फोटोग्राफर बड़ा खूंखार रहा कैमरा इसका हथियार रहा जो भी इसके दायरे में आए कोई न बच पाए गिनती दस से बीस हज़ार हो गई हरकते इसकी और खूंखार हो गई लोग पूछे कितना ये मुस्तैद हुआ भाई जी देखिए एल्बम खोल के हर चेहरा कैद हुआ आज याद ताज़ा है तो याद रहेंगी कल समय की धूल पड़ेगी धुंधली होगी फिर खो जाएगी तब मेरी तस्वीरे ही काम आएगी आज मेरी तस्वीरे बस तस्वीरे हैं कल सोना हो जाएँगी कभी हंसाएगी कभी रुलाएंगी मेरी तस्वीरे सोना हो जाएँगी आज चाहिए तो ले लो कमरा नंबर बीस में पेन ड्राइव लिए कल जब मेरी तस्वीरे सोना हो जाएँगी ये सोनार अपनी तस्वीरे नहीं देगा ढूंढने से भी नहीं मिलेगा : शशिप्रकाश सैनी 

हाँ पे हाँ ना हो सकी

खुले आम बताता हूँ नहीं मै शर्माता हूँ दिल रखता हूँ धड़कन भी रखता हूँ जज्बात मै कुछ समय की बात है कविता नहीं दिल के हालात है हर शब्द में जज्बात है किसी पे दिल आया था धडकनों ने भरमाया था नहीं दबा के रखा सीने में मैंने उसकी तरफ बढ़ाया था दिल अब की अजमाया था न कविता न दोहा न गजल थी दिल था बस दिल की पहल थी न तुकांत न बेबहर ना बाबहर मै शब्दों से खेला नहीं इस पहर सीधी सरल भाषा में बात बढ़ाई थी जो उसको समझ न आई थी हाँ पे हाँ ना हो सकी वो मेरी दुनिया ना हो सकी  : शशिप्रकाश सैनी 

कोई नहीं हमदम बताने को

न गुस्सा, न प्यार जताने को कोई नहीं हमदम बताने को न कोई जुल्फ उंगलियां फिराने को कोई नहीं हमदम बताने को हाथ लकीरे प्यार से खाली रही  कोई साथ नहीं, जिंदगी निभाने को कोई नहीं हमदम बताने को बोलूं बात करूँ उसकी सुनूँ, अपने भी जज्बात कहूँ बहोत सुनना था, बहोत सुनाने को पर कोई नहीं हमदम बताने को मैंने ढूंढी नहीं कोई हूर परी बस इस दिल ने चाहा कोई दिल रहे हम उसे समझे वो हमें समझने के काबिल रहे पर शायद उसे किसी शहजादे का इंतज़ार था मुझे सामने देख सकपका गई वो भागी, न फिर आने को कोई नहीं हमदम बताने को ओ दुनिया आवरण के पीछे जाने वाली ओ दुनिया मन न झांक पाने वाली तेरा शहजादा मुबारक तुझको ये तो वक्त ही बातएगा कौन कितना निभाएगा कौन मजधार छोड़ जाएगा मैं अब भी मानता हूँ कोई होगी मेरे लिए भी वो बादल बनेगी, मुझकों भिगाने को बरसेगी बरसात प्यार वाली हमदम हो जाएगी बताने को :  शशिप्रकाश सैनी   //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध Click Here//

यूँ तो मै लिख रहा हूँ अठारह साल से

यूँ तो मै लिख रहा हूँ अठारह साल से कलम चली मेरी कभी हकीकत कभी ख्याल से मुश्किल अल्फाज़ों से बचा के रखा सीधी बात करू बचूं मै टेढ़ी चाल से मेरी अपनी है कोई पराई नहीं कितना समझाऊँ लोग अब भी चोट करते है सवाल से जब दरिंदगी की हद हुई हद से भी बेहद हुई खून खौला मेरा, कटाक्ष निकल आए उबाल से खाई प्यार की पाटी कविताओं ने मेरी क्या बताए हम गुजरे है किस हाल से दिल से लगा के रखा, रखा बहुत पास इसे लबो जब भी लगाया, लगे प्रियशी के गाल से जब भी थरथराया दिल आँखों बहे आंसू हुए हौसला बांधा है मेरा, बन गए है रुमाल से नब्ज नहीं शब्द टटोलना  “सैनी” के शब्द न होंगे तो जान लेना भेट हो चुकी है काल से  : शशिप्रकाश सैनी  //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध Click Here //

पत्थर हो जाती हैं

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चेहरे से मुस्कान गई न बोले न हँसती हैं नैना ऐसे पथराए जैसे वीरानी बस्ती हैं छूने से पत्थर हो जाए बात न माने मेरी हाथ लकीरों से खेल ये प्यार की हेराफेरी नई नई ये बात नहीं अक्सर हो जाती हैं छूने से क्या हो जाता पत्थर हो जाती हैं चाहे कुछ हालात रहे मेरे छूने से जज्बात जमे रिश्तों से सब गर्माहट फुर्र(छू) हो जाती हैं नई नई ये बात नहीं अक्सर हो जाती हैं उससे बात बढ़ाऊ क्या दिल के हालात बताऊ क्या गर बोलू दो बोल कभी तो पत्थर हो जाती है नई नई ये बात नहीं अक्सर हो जाती हैं न कोई दिल तक आ पाए हाथों इश्क फिसल जाए धड़कन खो जाती है रिश्ता सब मर जाता हैं पत्थर हो जाती है नई नई ये बात नहीं अक्सर हो जाती हैं : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

भांग हर गली कुचे लुटी है

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हर गली कुचे में इंतजाम हुआ है पर्दे नहीं है सरेआम हुआ है भांग गई घोटी हुई बोटी बोटी दूधो मिलाई गई है चीनी घुलाई गई है कही सादगी से पिलाई गई कही रईसो की मेवा मलाई गई दामन उसका तार तार हुआ है अब की देखिए क्या सरकार हुआ है कभी आमो आम ने लुटी कभी खासों खास ने हवस में विलास में छली गई गिलास में कभी मदहोशी में कभी होशोहवास में भांग बटी है गिलास में पलेट से जैसे ही गोलियां खतम हुई सरदार बोल पुड़िया नई खोलिए मेरी हवस न हजम हुई पलेट से जैसे ही गोलियां खतम हुई दुनिया भूली दर्द उसका यादाश्त ज़माने की कफ़न हुई कराह आँसू हर बात दफ़न हुई हरकतों में हरकते ये आम हुई अब की खुले आम हुई हर गली कुचे में गोली है गिलासो इन्तेजाम हुई अपनी डालों पराई हुई टूटी है मूक ज़माने की रही सहमति मथनी से गई मथी सिलबट्टे कुटी है कांडलन घुटी है भांग हर गली कुचे लुटी है : शशिप्रकाश सैनी