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Showing posts from February, 2013

सामर्थ्य- अधिकार मेरा नभ पे होना

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मेरा पहला काव्य संग्रह  सामर्थ्य    अगर खरीदने की इच्छा हो तो  इस लिंक पे उपलब्ध है ये प्रिंट ओन डिमांड सर्विस है  तो १०-१४ दिन आपको किताब मिलने में लग सकते है  सामर्थ्य -अधिकार मेरा नभ पे होना उतार पे चढ़ाव पे, खड़ी थी हर पड़ाव पे बरसी बरसात तो छाता हो गई रोया मै तो रुमाल सब मेरी माँ का कमाल  पिता के शौक सारे धूल खाते रहे बिचारे धूल जब भी झाड़ी कभी हुआ वाकमैन कभी हुआ कैमरा  जो भी कभी जिद की झट हो गई पूरी सब मेरे पिता की जादूगरी ये काव्य संग्रह समर्पित उनको  कहता हूँ मै परिवार जिनको  मम्मी पापा बहनों बिना  जीवन व्यर्थ हैं  मेरा परिवार मेरा सामर्थ्य हैं : शशिप्रकाश सैनी 

साथी हर कदम वंदेमातरम

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हो रही सुबह छट रहा धुआँ जग रहा  युवा चलते साथ हम वंदेमातरम वंदेमातरम भाषा भेद ना जाती है कहा दूरी अब मिटा साथी हर कदम वंदेमातरम वंदेमातरम पंख खोल ले स्वास यू भरो मै से हम करे उड़ना है धरम वंदेमातरम वंदेमातरम नभ हद में हो यू आगे बढ़ो जिद पूरी करो टूटे हर भरम वंदेमातरम वंदेमातरम धूप न लगे चूल्हा हर जले अब रौशनी करे   न आँसू ना हो गम वंदेमातरम वंदेमातरम खेले हर खुशी जाँच कर नहीं कोख की कभी ले ये अब कसम वंदेमातरम वंदेमातरम गाँव भी बढ़े शहर भी रहे हक को हक मिले रहे कैसे कोई कम वंदेमातरम वंदेमातरम : शशिप्रकाश सैनी

वो मेरे आस पास है

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हवा ये कह रही सुनो वो मेरे आस पास हैं उसका आना यूँ खास हैं और जाना उदास हैं हवा ये कह रही सुनो वो मेरे आस पास हैं हर पल मुझसे खेल ये खेले मुझकों नादा कहती हैं आँखों पे पट्टी हैं बांधी पास तू आ जा कहती हैं उसका आना यूँ खास हैं और जाना उदास हैं हवा ये कह रही सुनो वो मेरे आस पास हैं वो बोले हौले से तुम कितने हो भोले से इस आँख नजर का क्या करना जब दिल की भाषा आती हैं ध्यान लगा सुन तो भोले धड़कन मेरी गाती हैं तुझको राह बताती हैं उसका आना यूँ खास हैं और जाना उदास हैं हवा ये कह रही सुनो वो मेरे आस पास हैं मिल जाए तो मिल जाए अब की उसको छोडू ना कस के पकडूँ बाह तेरी मै बात जुदाई छेडू ना दिल को पूरा अहसास हैं तू कितनी कितनी  खास हैं हर पल रह तू पास मेरे तेरा जाना उदास हैं : शशिप्रकाश सैनी

दिल ये तोड़ रखा है

जब से उसने मेरा दिल ये तोड़ रखा है हमने भी धड़कना छोड़ रखा है  इस दिल से आवाज़ भी तो क्या आए  अपनी खटरपटर दुनिया को क्या सुनाए  इससे फायदा भी क्या खाक होगा  लोग सुनेगें हँसेंगे मजाक होगा  : शाशीप्रकाश सैनी

निपटान रगड़ान स्नान मधुर जलपान

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बड़ी बड़ी बाते बड़े बयान सुन सुन के इतना बखान निपटान रगड़ान स्नान मधुर जलपान पक गए कइयो के कान इतना बखान पचाना नहीं आसान सुबह-ए-बनारस घाटो की देखा खुला आसमान शामो गलियों में ली गालियाँ भी छान रविदास पे लौंगलता पहलवान कचोड़ी गली में कचोड़ी की शान ठठेरी में घुसे तो मिला हरिश्चन्द्र मकान रबड़ी मलाईयो से वही हुई पहचान पतंग गली नारियल बाजार दिना चाट दुकान बी एच यू  पहुचें तो जाना क्यूँ मालवीया जी महान  अस्सी से राज गली से गली बंगाली टोला ठठेरी भी डोला काशी के कण कण में है महादेव विद्यमान तब जाके हुआ हमें ज्ञान काशी साछात शिव है काशी घुमियेगा जी जियेगा बनारसी हो के तब समझने में होगा आसान गलत नहीं है बखान पहले निपटान फिर रगड़ान फिर स्नान फिर मधुर जलपान : शशिप्रकाश सैनी

बलतोड़ हुआ है

रात भर आँख झपकी नहीं नींद आई नहीं दर्द बहुत जोर हुआ है  की मुझे बलतोड़ हुआ है  कराहा मै नहीं की लोग कहेंगे ये कमजोर हुआ है  दर्द सहता रहा लंगड़ाता रहा की मुझे बलतोड़ हुआ है  अब पेन किलर खा के मै चलता हू क्लास को अटेंडेंस जरुरी है डिग्री की आश को दर्द दबाओ की प्रतिशत बढ़ाना है अब की सत्तर पार जाना है सब जाते क्लास को की क्लास करेंगे हॉस्टल में बड़ा ये शोर हुआ है जब करनी है क्लास तो ये बलतोड़ हुआ है पैकेज है लुड़का उल्लू बने बड़का इस पे भी कोई मिली सीख नहीं है नौकरी की चाल ढाल ठीक नहीं है बम्बई के भटके मैसूर से हटके बनारस में लटके लूली है देती है झटके खोलने में मुश्किल ये डोर हुआ है  की प्लेसमेंट को अब की बलतोड़ हुआ है : शशिप्रकाश सैनी

तलाशे आँख यूँ ऐसा नज़ारा फिर कहा

तलाशे आँख यूँ ऐसा नज़ारा फिर कहा धड़कना भूला दिल ये हो दुबारा फिर कहा इनको देखे उनको देखे खूब दोनों ही थी हुस्न की जादूगरी दोष हमारा फिर कहा रुक जा की सांसे थाम ले ले वक्त का इनाम ले जन्नत जमी पे हूरें यूँ देती इशारा फिर कहा जब जमी पे ये चमके रौशनी इंतनी करे अस्मा पे नजर क्या दीखता सितारा फिर कहा झील आँखों की मिली डूबना गर मुमकिन करो डूबना तो शौक है अब मुझकों किनारा फिर कहा कलम मेरी कहे और कैमरा भी कहने लगे “ सैनी ” चुप रहना  कोई  चाहे नहीं ख़ामोशी गवारा फिर कहा : शशिप्रकाश सैनी 

एक टोकरी सूरज

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रात टल चली है की दिन हो आया एक टोकरी सूरज दूजे में चाँद छुपाया तारे सारे बिन बिन डाले बिन डाले आकाश स्लेट अपनी साफ यूँ करता  नई सुबह नई आश काले से हुआ लाल लाल हुआ नीला क्या चमत्कार दिखलाया एक टोकरी सूरज दूजे में चाँद छुपाया होने को क्या हो जाए समय पे ना ये आए सुबह नहीं ये लाए कैसे हम जग पाए जग त्राहि त्राहि गाए भूले से भटके से जब टोकर में कुछ न लाया एक टोकरी सूरज दूजे में चाँद छुपाया चिडियों की चहक भरी फूलों की महक भरी टोकर का ढक्कन खोला तो क्या क्या है निकला एक इतनी सी टोकर में क्या क्या ये लाया कितना कुछ समाया एक टोकरी सूरज दूजे में चाँद छुपाया : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध Click Here //

शराफत चोला है

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This post has been published by me as a part of the Blog-a-Ton 36 ; the thirty-fifth edition of the online marathon of Bloggers; where we decide and we write. To be part of the next edition, visit and start following Blog-a-Ton . The theme for the month is "and then there were none" अच्छा, बुरा, सही, या गलत ये पाठ पढ़ाए कौन असमंजस में बालक है बैठा दुनिया बैठी मौन किस्से का किस्सा है हर शहर का हिस्सा है रात हुई तो लोगो ने अपना बदन यूँ खोला है दिन में आती काम शराफत चोला है जब तक चेहरा वो जान रहा ये हाड मांस इंसान रहा जब चेहरे की पहचान गई इंसा होना आसान नहीं अंधियारा पाया इसने  तो बदन ये खोला है दिन में आती काम शराफत चोला है असमंजस में बालक है बैठा दुनिया बैठी मौन जहाँ दुनिया थी जागी पहरेदार लकीरों पे तब बिलकुल न पार करे कहता प्यार लकीरों से धर्म कर्म का मर्म बताए न जाऊ पार लकीरों से जब पहरेदार नदारद थे बस वो था लकीर थी और फिर वहाँ कोई न था चोला शराफत, उतारा उसने फिर घर उजाड़े, उजाड़ी बस्तिया

खिड़की में गंगा, गंगा में नाव

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कुछ समझे है मंजिल, कुछ समझे पड़ाव  खिड़की में गंगा, गंगा में नाव  किसीको धर्म खीच लाया, किसीको भंगेड़ी लगाव  खिड़की में गंगा, गंगा में नाव  कोई झुक के आया, कोई दीखता है ताव खिड़की में गंगा, गंगा में नाव  रबड़ी दीवाना, मलईयो पे झुकाव  खिड़की में गंगा, गंगा में नाव  कोई जवानी में आया, कोई बुढ़ापे की छाव खिड़की में गंगा, गंगा में नाव  कम करो चिंता, थोड़ा मुस्काओ  खिड़की में गंगा, गंगा में नाव  तट पे मरमम्त, मरमम्त पे नाव मरमम्त हुई नाव, तभी तो तैराओ खिड़की में गंगा, गंगा में नाव  ब्लू हुई लस्सी, बिल हुआ अस्सी बिल की न चिंता, हमको जी पिलाओ खिड़की में गंगा, गंगा में नाव  मंसूर भाई आना, कबूतर मिला दाना पास न जाओ, कबूतर न उड़ाओ खिड़की में गंगा, गंगा में नाव  कचौड़ी गली और जलेबी भी ली  ठठेरी बजार में रबड़ी मिली  काजू गजक ने मिटाई कसक  जिसकी तमन्ना गजक  केदार घाट की सीडी लपक  चाट चटोरे  शहर के बटोरे  नारियल बाजार में सब मिलो रे  स्वाद मैंने चखे  थोड़ा तुम भी चखो रे नाव गई गंगा में