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Showing posts from June, 2012

कहने को मल्लाह है

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कमजोर कंधे हैं पर हौसला बड़ा हैं इसकी लहरों से ठनी रहे की चूल्हे मे आग बनी रहे कमजोर हैं पर योद्धा हैं अपने जज्बे पे लड़ता हैं भूख हिम्मत और ताकत हो जाती हैं जब भी नदी डराती हैं कहने को मल्लाह हैं इसकी नाव से पूछो घर के चूल्हो से बहना के बस्ते से घर की आटा दाल हैं स्कूल की फीस हैं घर को रखता हैं रोशन ये वो चिराग हैं खुद जलता हैं चूल्हे को देता आग हैं दो वक़्त की रोटी का इंतेज़ाम हैं दुनिया के लिए मल्लाह इसका नाम हैं : शशिप्रकाश सैनी 

सड़क का आदमी

सीने पे है निशान और चेहरे पे है दाग बहोत    पीठ पीछे लोग करते है बात बहोत नाम मेरा लो फिर कीचड़ उछालो तब सामने आओ दिन मे निकलो रात को घर जलाने वाली हमने देखी है आग बहोत    तुम आसान हो आसान आदमी रहो मै मुश्किल हू किस्मत देती रही मुश्किलात बहोत रोज़ लड़ना है रोज़ मरना है एक रोटी के लिए देखो क्या क्या करना है क्या समझेंगे मेरे हालात बेड टी वाले कभी बटुआ कार छोड़ सड़क पे आओ फिर दो इंतेहान ज़िंदगी वाले एसी कमरो से न करो बात बहोत ये चैरिटी ये चैरिटी ये चैरिटी क्या है बिसलरी की बोतले है मुर्गे की टांग है झुग्गी के दर्द पे आसू बहाना पर 5 स्टार की मांग है ये चैरिटी कैमरे का चमत्कार है काम के कम है इनके है बस नाम बहोत : शशिप्रकाश सैनी                  

असली बात करो

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Photo courtesy: Unbound state मैं कवि हूँ  बस कविता करता हूँ   लाऊं कैसे दर्द खुशी उधार की   रोना है हँसना है   असल मेरी हर रचना है   ज़िंदगी कोई झूठ पे कैसे जिएं आइने दिखा देते है असली सूरत कब तक आइनों से बचे   दुनिया का हर शख्स आईना है कब तक किससे कितना छुपोगे नकाब ओड़ोगे या आईना तोड़ोगे      जिस दिन अपनी नज़ारो से गिरे फिर कैसे जियोगे   झूठ की इटे झूठ की दीवार   झूठ का महल   जब नींव ही खोखली होगी इमारत कब तक टिकेगी जब सच बरसेगा पानी बनकर या हवाओं में आयेगा झूठ के दस सर भी कम पड़ेंगे जब सच पुर्षोतम हो जाएगा  तीर चलाएगा झूठ तास का महल ढह जाएगा असली चेहरो मे घूमो        असली बात करो         बंदर भी कर लेता है नकल अच्छी अंदर का बंदर किसी दिन उस्तरा गले पे घूमा देगा सर न बचेगा ऐसे न हालात करो इंसान ही रहो बंदर न बनो असली चेहरा दिखाओ असली बात करो : शशिप्रकाश सैनी 

दाग अच्छे है

पीसी पे या विलास पे या हो अभद्र ही मेरे सारे बच्चे है    रुपये कमाए तो कमाए मेरे लिए डॉलर लाए मंत्री सारे सच्चे है दाग अच्छे है                 विपक्ष मे हो तो पापी इस्तीफा हो  नहीं कोई माफी उनसे हुई तो गलती हमसे  हुई तो भूल जब तक कोर्ट नहीं कहता हम ना करे कुबूल   वो दबाए तो हमारी जेब कैसे भरे दगा उनके बुरे देवी को चड़ावा न चड़े ऐसी सत्ता न चले देवी को भोग तो दाग सारे अच्छे है : शशिप्रकाश सैनी  

हाइकु पहला प्रयास

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देवता नहीं अब प्रेम का कोई बाज़ार हुआ : शशिप्रकाश सैनी 

रानी घमंडी

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photo courtesy: Outlook India उपहार मे सत्ता मिली जमीन की नहीं वो आसमान से उतरी ढोंग ढोंग की देवी कुछ कहते है चंडी कुछ के लिए दुर्गा मुझे तो बस डायन दिखी जब भी ध्यान से देखा वो थी रानी घमंडी जेपी के नरो से कुर्सी ऐसी हिल गयी डायन इतनी घबराई की लोकतन्त्र लील गयी न्यायालय खा गई अखबार सारे पचागाई लोकतन्त्र बेड़ियो मे हवालात जेल मे था ऐसी थी रानी घमंडी आज भी अपरोक्ष आपातकाल है सत्ता कितना भी देश को खा ले जैसे मन करे दबा ले इनके लिए कोई सज़ा नहीं बस मज़ा है क्यूकी ये दल नहीं दलदल है भ्रष्टाचार का महल है डायन के वंसजो से उम्मीद भी क्या रखे जनता के जिस्म मे दाँत गड़ाएंगे बूंद बूंद पी जाएंगे वो थी अब ये है रानी घमंडी : शशिप्रकाश सैनी 

दाग धुले आग मे

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एक नयी लौ है काँग्रेस के चिराग मे सारे दाग जले आग मे किसको क्या मिलना है राख़ मे पाप धूल जाएंगे आग मे ये सोच भी उधार की मुंबई ईकाई ने आग दी मुंबई दिल्ली के बाद जयपुर हैदराबाद इनको बहोत आग लगानी है जब धुआ होगा तो दिखेगा नहीं तो नज़र बचा के फ़ाइले दबानी है अभी तो बहुत आग लगानी है फ़ाइले मन्नू की भी जला रहा है क्या दादा को भी बचा रहा है आग इसलिए लग रही है क्यूकी कुर्सी खिसक रही है एक आग जलने के लिए तुम्हें निगलने के लिए सुलग रही है जनता जग रही है : शशिप्रकाश सैनी

वाह री धर्मनिरपेछता

जालीदार टोपी लगाने से इफ्तार खाने से दाड़ी बड़ाने से लोग धर्मनिरपेछ होने लगे वाह री धर्मनिरपेछता    मौका बेमौका हरा पहने भगवा से भागे मदरसो को रखे आगे धर्म विशेष पढ़ाने मे धन दे तो आप धर्मनिरपेछ होजाएंगे नहीं तो आप कट्टर है कट्टर ही रह जाएंगे वाह री धर्मनिरपेछता शहीद को लानत दे आतंकी के गम मे आसू बहे ओसामा के मरने का दुख हो सीएसटी की स्याह रात भुलजाए कसाब को दामाद बनाए बिरयानी खिलाए तर्क ये या कुतर्क कहे सामाजिक सौहार्द बिगड़ जाएगा जब अफजल  फांसी पे आएगा ऐसे सामाजिक सौहार्द को लानत दे आतंकी पले जिसकी आड़ मे वो सौहार्द जाए भाड़ मे वाह री धर्मनिरपेछता ; शशिप्रकाश सैनी 

हम चौपाल के कवि

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चौपाल के कवि शिपिया टटोलता हु मोतियों की आश में काव्य के मोती मिले जाने किस लिबास में मुक्तक हाइकु दोहा हो हास्य रंग भिगोया हो है रस बरस रहा क्यों बैठे जी प्यास में अतुकांत तुकांत ग़ज़ल करे कोई नयी पहल करे भविष्य काव्य का झाके आके देखे इतिहास में हास्य रस है वीर रस और कही सृंगार रस आइये पढ़े सुने भरे मन के गिलास में हम चौपाल के कवि हर ख्याल के कवि अब की चौपाल बिठानी ले आइये पास में मोतियों की माल आप बिन अधूरी है "सैनी" कहता है ये पुरे होशो-हवास में : शशिप्रकाश सैनी                        चौपाल के कवि FB page

आस्था यहाँ जीवनी है

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जब भी यहाँ माथा टिकाते है ईश्वर को दुःख सुख का साथी बनाते है जब भी उसके घर आते है आपकी आस्था चूल्हा हो जाती है कइयो के घर चलाती है फूल नारियल चुनरी है आस्था यहाँ जीवनी है : शशिप्रकाश सैनी

चौपाल के कवी एक पहल

चौपाल का ख्याल क्यों १)        कवियों को एक साझा मंच प्रदान करना २)        एक दूसरे को पढ़ने और हौसला बढाने का एक प्रयास ३)        आपसी सहमति से विषय निर्धारण तथा निर्धारित विषय पे कलम आजमाना ४)        विषय की घोषणा माह की पहली तिथि पे होगी ५)        माह की ५ वि तिथि अपनी रचानो को लिंक्स द्वारा यहाँ उपलब्ध करना होगा ६)        प्रतियोगी कवी अपनी पसन्दीदा कविता को वोट कर सके इसके लिए महीने की १५ तारीख तक वोटिंग चलेगी ७)        प्रतियोगी कवी अपनी रचना को छोड़ किन्ही तीन कवितो को वोट कर सकते है ८)        महीने की १६ तारीख को परिणाम घोषित होंगे ९)        विजेता रचनाकारों को काव्य विभूषण , काव्य भूषण तथा काव्य श्री से सम्मानित किया जाएगा १०)    १० या  से अधिक रचनाएँ आने की स्थिति में काव्य श्री दिया जाएगा ११)    सम्मानित रचनाएँ पुरे महीने चौपाल पे प्रदर्शित की जाएँगी १२)    आइए चौपाल को इस तरह तैयार कर की नये उभरते हुए  युवा  कवियो का मार्गदर्शन हो . चौपाल के कवी   को फौलो करे और हौसला बढ़ाऐ  हां आज मै अकेला हू अकेले चला हू आज कदम दो है कल चार

क्या किया जाए

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फेसबुक की फ्रेंड लिस्ट में न हुई है आइटम सेट चैट ग्रूप में सब बेढंगे  करे हम किस से चैट क्या किया जाए क्या किया जाए ऑफिस में है बास की गली सर में है खटपट टारगेट सारे दूर हुए न चित मेरी न पट क्या किया जाए क्या किया जाए लोकल की है धक्कामुक्की ट्रेन भरी ठस ठस कंडक्टर की पकपक सुनते बेस्ट में भी बेबस क्या किया जाए क्या किया जाए ऑफिस में पूरी कडकी है सौ में दस ही लड़की है आँख कही पे फड़की है आग कही ये भड़की है बंद मेरी क्यों खिडकी है क्या किया जाए क्या किया जाए मूवी मल्टीप्लेक्स की शान हर वीकेंड पे जाती जान लो बजट मै पिक्चर डार्लिंग मेरी स्टार बड़ी कैसे दू कितना दे दू डिमांड बहुत है करती जी क्या किया जाए क्या किया जाए सिंगल का दंगल हू मम्मी कहती मैरेज कर पाप कहते अब घर भर पोते और पोती दे दे दाद और दादी कर दे क्या किया जाए क्या किया जाए जब से ई एम् आई बड़ी तनखा है सरमाई पड़ी दाल रोटी और दाना घर लाना कैसे लाना पेट्रोल की आग बढ़ी क्या किया जाए क्या किया जाए न

सेल्फ प्रमोसन

जब तक कवी था बस लिखता था डायरी में रहता था दिल की बात दुनिया से न कहता था बस लिखता था अब मेनेजर होने जा रहा हू पबलिसिटी प्रमोसन समझता हू कंटेंट तो ज़रूरी है पर दिखोगे नहीं तो बिकोगे कैसा ये भी मज़बूरी है मन कवी है धडकनों पे प्यार पे लिखता हू मै बहार पे पर बुद्धि तो मेनेजर है जिसको आई लाज बिगड़ा उसका काज ये सिद्धांत है सेल्फ प्रमोसन से न शर्माइए अपना कार्ड अपने हाथो बड़ाइए : शशिप्रकाश सैनी

क्या खूब है मर्दांगनी

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दिल के रिश्ते थे जो कोमल मांग प्यार की पुचकार थी  देता रहा वो पल -पल  लात घुसे और चप्पल  और बस धुत्कार थी  क्या खूब है मर्दांगनी दो रोटी चार दिन वो भी चलाए प्यार बिन भाग्य घर का सवारे  घर संभाले दफ्तर संभाले  तेरी दुनिया जिसके हवाले उसपे ही तू गुस्सा निकाले  पिटी है अर्धांगनी  क्या खूब है मर्दांगनी रात दिन खटती रहे चिंता से घटती रहे आंख काली पीठ सूजी हाथ में फ्रैकचर रहा  गलतीया पुरखों ने की  न  दी   कभी बराबरी  बस पुर्षत्व का लेकचर रहा अन्नपुर्णा के ही हाथ में फ्रैकचर रहा  क्या खूब है मर्दांगनी कौन कहता है सहो  पूरी ज़िन्दगी घुटती रहो  ले के कड़छी और बेलन  जब भी मारे दे दनादन  और तवा और थाली  अब की सुनना न गाली मुह फोड़ीये नाक भी अब की जो उंगली उठाए  न बचे उंगली न बचे आंख भी  बात दे तो बात दो लात दे तो लात दो वो असुर तुम दुर्गा बनो  अपनों को घायल करे  रिश्ते पल-पल मरे  भाड़ में जाए मर्द वो  और भाड़ में मर्दांगनी  : शशिप्रकाश सैनी

है मुझे भी खेलना

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मै भी खेलू मै भी खेलू  मुझे भी बुलाओ जरा है मुझे भी खेलना  हां बाल मेरे झड रहे  पर मै दिल से बच्चा बड़ा  दोस्त मेरे लोकल बेस्ट  भीड़ में फसे है फाइलों में धसे है  खेल न खेलेंगे हम  की है नहीं अब बचपना  ये जवानी ले गयी  मेरे बाल मेरा बचपना  ये जवानी ले गयी मेरे बाल मेरा बचपना  फूटबाल पे न टूटना  फाउल पे न रूठना कीचड़ का सब खेलना  बरसात में जो  था भीगना  ये जवानी ले गयी मेरे दोस्त  मेरा बचपना  ये जवानी दे गयी  गाल का अब पचकना  हां ले गयी हां ले गयी मेरे दोस्त मेरा बचपना  : शशिप्रकाश   सैनी 

पहली बरसात हुई

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पंख गिले है  पहली बरसात हुई है  धूप पसीने से तरबतर तन  सोच भी घायल झुलसा मन गर्मीया गर्म हवाओ में चुभन  जख्म भरेंगे कैसे  क्या कोई बात हुई है  हां  पंख गिले है  पहली बरसात हुई है  कभी प्यास से प्यासा रहा कभी सोच से प्यासा रहा  धूप पड़ी थी बहोत कड़ी थी जब न हाथ में छाता रहा  सूरज झुलसाता रहा  कपार खुजलाता रहा  मै सोच से प्यासा रहा  मिट्टी की सोंधी महक ने कहा  चिड़ियों की चहक ने कहा बादल कड़कती बिजलीया कोई बात हुई है   हां घर से निकालो की  पहली बरसात हुई है  है भीगना है भीगना है मुझे भी भीगना  दिन भीगना है भीगना पूरी रात है  ये ना पूछिए क्या बात है धूल सारी धुल गयी उभरे नए जज्बात है  ये ना पूछिए क्या बात है बस हो रही बरसात है  क्या बात है क्या बात है  बस हो रही बरसात है  : शशिप्रकाश सैनी  You might also like: ओ बादल बूंदें बरसाना

राजमाता सत्ता की

http://shashikikavitaye.wordpress.com नाफरमानी रानी से कुछ तो सीखिये दिल्ली की कहानी से जिसे सर झुकना आता नहीं रानी को वो भाता नहीं हुक्म पे तामिल हो मै राजमाता सत्ता की मेरी बात ना हो अनसुनी मै राजमाता सत्ता की जिसको जब चाहे गिरा दू पद पे सारे बिठा दू मै बंदरी और बंदरा दे के सारे हाथों में उस्तरा हुक्म ये चलाइए मन हो जिस तरह इस तरह या उस तरह मेरी भरनी चाहिए जेब चाहे हो जिस तरह हुक्म पे तामिल हो मै राजमाता सत्ता की कितने बड़े खिलाड़ी है कितने चतुर है जनता के दुःख पे आसूं पर सत्ता से रिश्ते मधुर है साथी सत्ता के सबसे चतुर है साथ उनके है और अलग दिखलाना भी है चासनी भी चाटनी है और चिल्लाना भी है : शशिप्रकाश सैनी  You might also like: आग पेट्रोल में लगा के  अठाईस की अमीरी इंसान रहने दो वोटो में न गिनो राजनीति की प्रयोगशाला

ना से डरना क्या

मेरे इजहार पे तू शरमाई नहीं मै अस्मा हो के भी झुका  तू जमी हो के भी आई नहीं  वो समझी हम टूटेंगे बिखर  जाएंगे  फकीर की मानिन्द दर-दर जाएंगे  एक ना से डर जाऊ बिखर जाऊ  मुझमे इतनी नासमझी नहीं  तुने ना दी है  ठुकराया है मुझे  तो कही किसी के होठो में हां होगी रात घनी है तो जल्द ही सुबह होगी मेरे इजहार पे उसे शर्माना है  लबो को हौले से हिलाना है  की उसको हां हो जाना है  :शशिप्रकाश सैनी You might also like: ना का डर हां से हल्का है मिल जाए कोई कवयित्री खाली पन्नें

आजमाइश

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मेरे हौसलों को इतना आजमाया हैं  कड़कती बिजलीया बरसात  तूफान ले आया हैं  भेट या थाल में किस्मत कुछ न लाई उपहार में  तोला हैं परखा हैं तपाया हैं तेरे खुदा ने हर कदम पे आजमाया हैं  तब जाके हाथों में कुछ आया हैं  दो बुँदे बरसात की मुझे क्या भिगाएगी  क्या मेरा हौसला डिगाएगी हूँ परिंदा की  उड़ने की आदत हैं  आस्मां से यूँ मोहब्बत हैं  आंधी तूफान बिजलीयो  से परे  जिसकी ज़िन्दगी हो आस्मां  वो उड़ने से क्या डरे  : शशिप्रकाश सैनी  //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

ज़िन्दगी हर मोड़ पे इम्तेहान रही

भीड़ लोगो की लगी  कभी बियाबान रही ज़िन्दगी हर मोड़ पे इम्तेहान रही कभी भोर की हवाओ में  कभी रात का तूफान रही  ज़िन्दगी हर मोड़ पे इम्तेहान रही  दुश्मन करे दोस्त करे  पर सीने पे वार करे  खंजर पीठ पे  बुज़दिली की पहचान रही  ज़िन्दगी हर मोड़ पे इम्तेहान रही  : शशिप्रकाश सैनी  //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //