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Showing posts from April, 2012

हमसे कोई पाप ना हुआ

कहते हैं मोहब्बत एक से हो हमे हज़ार से होने लगे गलती बताइए अब हर एक को देख  हम खोने लगे कोई हुस्न की मलिका कोई अदाओ की रानी कुछ नयी तो कुछ पुरानी  चंचल मदमस्त जवानी फिर क्यों न दिल बरगलाए खुदा ने हुस्न दिया सारी तोहमत हमी पे आए  दुनिया हसीनो से भरी हम देखे भी ना हम नज़र भी ना मिलाए हमने कभी की कविता कभी कर दी शायरी इससे ज़्यादा हम से कोई पाप ना हुआ दिल मासूम था कोई अपराध ना  हुआ : शशिप्रकाश सैनी      

प्रेम ना पचा पाए

इश्क मोहब्बत प्यार सब चंद अल्फाज़ है हकीकत नहीं है हम उनके दिल में नहीं वो अब हमारे दिल में नहीं है असिमित थी दुनिया हम होना चाहते थे सिमित उस एक को मन में बसाए होजाए मनमीत प्रीत हर किसीको नहीं जचती जो प्रेम ना पचा पाए उसके लिए क्या आसू बहाए गुनाह था प्यार करना जिसको हम गुनहगार होगए फिर क्यों नहीं इसके लिए भी लिखे उसके लिए भी जी एक यही तो हुनर है फिर क्यों ना लिखे जी : शशिप्रकाश सैनी 

शाम का सूरज है वो कोई पड़ता काम भी नहीं

शाम का सूरज है वो कोई पड़ता काम भी नहीं मतलब निकल गया है कोई दुआ सलाम भी नहीं उनका ही नहीं खबर रखते थे पुरे खादान की शोहरत की इमारत बची नहीं जहन में नाम भी नहीं मतलब की यारी पैसे से मोहब्बत यही फितरत बटुए की बिगड़ी हालत पे कोई पैगाम भी नहीं सत्ता का नशा है मदहोश है नेता तेवर बिगड चुके न धर्म न जात फिजूल मुद्दों में बटी आवाम भी नहीं उसके सामने जाम का नशा था कम “सैनी” उसके बगैर कोई शाम शाम भी नहीं : शशिप्रकाश सैनी 

लक्ष्य क्या तय करे

छोटे पूछते हैं भविष्य का हम क्या करे किस रास्ते चले लक्ष्य क्या तय करे मिल जाए मंजिल वही कौन से हम पग भरे हम क्या बताएँ क्या रास्ता दिखाएँ हम क्या बनना चले क्या बन रहे बचपने में चौकीदारी भाती यही नौकरी मन लुभाती सातवीं में खिलौने तोड़ता फिर उन्हें जोड़ता वैज्ञानिक बनने की हो रही थी इच्छा अब नहीं रहा था मैं बच्चा होते होते हम इंजिनियर हो गए बचपन के सपने बचपने में खो गए एरोनॉटिक्स की थी कामना टेलिकम्यूनिकेशन्स से हुआ सामना इच्छा सोच समझ सब रह गई धरी की धरी ज़िंदगी की चाल भारी पड़ी होते होते हम इंजिनियर हो गए इंजीनियरिंग खत्म हुई कैट ने बरगला दिया बी स्कूल के दरवाज़े ला दिया एमबीए मेनेजर का उन दिनों ख्याल था  क्या बनना चाहते थे अब भी एक सवाल था कुछ महीनों मैनेजर रहें फिर हमारे गुरु बनारस ने हमें जगाया, यह नहीं तेरा रास्ता तू यहाँ क्यों आया  फिर इस्तीफा दे चले आए  दिल्ली की ख़ाक छानने अपने दिल की मानने दिल की सुनी, दिमाग की सुनी नहीं 

मेरी मदिरा मेरे पास

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न भट्टो पे जाता हू न देशी दारू की दुकान न मैखाने से पहचान जो नशा ज़िंदगी देती मुफ्त में मै उन्हें बोतलों में खरीदता नहीं मेरी मदिरा मेरे पास तीखे मोड चडाई ढलान मुश्किल ज़िंदगी कभी आसान मेरी मदिरा इन्ही में है नशा ज़िंदगी में है मेरी मदिरा मेरे पास एक कटिंग चाय दो वाडा पाँव समोसे जलेबी से लगाव मेरी मदिरा इन्ही में है नशा हर किसी में है मेरी मदिरा मेरे पास माँ की लाड में पापा की डाट में बहना से उलझने में फिर सुलझने में है इनके प्यार में नशा पुरे संसार में मेरी मदिरा मेरे पास यारो की यारी में इश्क की खुमारी में रूठने मनाने में होठो के टकराने में प्यार जताने में उनसे नज़र मिलाने में जज्बात दिखाने में नशा इतना है क्यों जाए मैखाने में मेरी मदिरा मेरे पास कविता में शायरी में पूरी मेरी डायरी में हर शब्द नशीला है दिल से जो निकला है मेरी मदिरा मेरे पास जब छलके इतनी तो क्यों खरीदनी : शशिप्रकाश सैन

मेरा हाल न पूछ

कर के बहाने पास आना नहीं न मेरी सुन अपनी बताना नहीं मेरी जुस्तजू न पूछ मेरा हाल न पूछ तू हक खो चुकी कोई सवाल न पूछ दिल के ख्याल मन के मलाल न पूछ तू हक खो चुकी कोई सवाल न पूछ : शशिप्रकाश सैनी

होगए है आधे मेनेजर

यू तो हो गया हू मै आधा मेनेजर कहानी भी है अजीब मेरी बड़ा टेढ़ा था ये सफर छोड़ के मुंबई का शोर निकले थे मैसूर की ओर SDMIMD   जान लीजिए घर होगया था कन्नड़ा गोथिल्ला थी दोस्त मिले खास हसीन सफर होगया था फिर ना जाने कहा से बीमार होगए दिल करने लगा गडबड हम बेकार होगए FMS   का लैटर जाने कहा से आ गया बीमारी में भी हौसला बड़ा गया FMS  में आने की ये लालसा थी ICU   में थे मौत सर पे खड़ी थी फिर भी हमे FMS की पड़ी थी ज़िंदगी में पहली बार उड़े थे बंगलौर से सीधे बनारस उतरे थे FMS का माहोल खुशनुमां था BHU में पढ़ने का सपना था देखते देखते साल होगया MBA   भी देखिए कमाल होगया ये था साल ये था सफर हम होगए है आधे मेनेजर : शशिप्रकाश सैनी 

MaI chalne ke liye bana tha @ UNNAYAN 2012

एक से दो से हज़ार से

एक से दो से हज़ार से कब तक खेलिएगा एतबार से रातो की रंगीनियां होंगी जलवा होगा बाज़ार में आप भी होगए है कारोबार से बस पल भर की खुशी है वो भी बिकी है क्यों डरते है इतना आप दिलदार से है मानते धोखा हुआ था जब आपने दिल दिया था रूठना था हक तुम्हारा अब छोडिये गुस्सा संसार से छेडिए न जख्म जख्म भर जाएंगे “सैनी” दिल लगाइए फिर देखिए क्या होता है प्यार से : शशिप्रकाश सैनी

मिल जाए कोई कवयित्री

इस कवी को मिल जाए कोई कवयित्री ज़िन्दगी हो जाए जैसे कोई पोएट्री  वो करे कविता हम कहे शायरी  बस यू ही भरती जाए जिंदगी की डायरी उनके आने से लय ताल होजाए  जीना भी फिर कमाल होजाए  मै वीर रस वो श्रृंगार रस  प्रेम बढ़े बरस दर बरस  हम हो जाए दोहा तुम हो जाओ ग़ज़ल हम तुम्हे सुने तुम हमें प्रेम हो जाए सफल  हम कहे काफिया तुम जोड़ो रदीफ़ ग़ज़ल हो जाएगी पूरी तुम आओ तो करीब हम बेबहर से हमे बाबहर करो हम कविता कर लेते है  तुम ग़ज़ल करो  कोई कवियत्री कोई शायरा मिले तो बताना  एक कवी दिल टटोलता है  इस आश में कही मिल जाए ठिकाना  : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

मै अकेला रह नहीं पाता

मैं अकेला रह नहीं पाता तेरे ख्याल आते हैं अंधेरे कमरों में उम्मीद के जुगुनू टिमटिमाते हैं रौशनी चुभने लगी है आँखों में, कोई बुझा दे ये दियें मेरे छुने से लोग पत्थर हो जाते हैं भावनाए नहीं बचती संवदेनाएं मर जाती हैं मेरे छुने से लोग पत्थर हो जाते हैं मैं अभिशाप होने लगा हूँ तुम वरदान ही अच्छी छुओ न मुझे आओ न करीब दुनिया में वरदान बहोत कम अभिशाप बहोत ज्यादा हैं   : शशिप्रकाश सैनी

ऐ खुदा भूलने का हुनर दे की हम उसे भुला दे

ऐ खुदा भूलने का हुनर दे, हम उसे भुला दे बावफाई का सिला बेवफ़ाई, उसकी यादे भी जला दे बेवफाई की दुनिया ये, दिल लगाना हैं गुनाह या खुदा रहम कर बन्दों पे, जीने का हौसला दे जीतनी भी सुन्दर काया, आँखों में सब माया ये इश्क की जादूगरी, अच्छे अच्छो को बरगला दे दिल खेल हैं, आप खिलवाड़, वो खिलाड़ी यारो को भिड़ा दे, बरसों की दोस्ती हिला दे रौंदे है दिल, मिट्टी में अरमा रौंदे है बेवफ़ा को बेवफ़ा मिले ये सिला दे वो बेवफ़ा थी लौट के आनी नहीं “सैनी” मयकदा चल मय की मयकशी में उसे भुला दे : शशिप्रकाश सैनी  //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

मै अब बोलने लगा हू

ज़ज्बात अल्फाज़ होने लगे है चुप नहीं रहता बोलने लगा हू दिल-ए-किताब से धुल हटाई है पन्ने दर पन्ने खोलने लगा हू आंखे बोलती है तेवर चुप नहीं रहते इश्क की आग जो बढने लगी है जुबा कम पड़ने लगी है इशारों में गहराई झांक लो आंखे देखो मन भाप लो दिन के चार चक्कर तेरे घर के इधर उधर रास्ता था कहा जाते किधर तेरी गली अब रास्ता होने लगी है चाय की चुस्कियो वाली सुबह यही है रात की चाँदनी भी यही देखनी है पड़ोसी जान गए है तुम भी जान जाओगी की मै अब बोलने लगा हू : शाशिप्रकाश सैनी 

मुश्किलात में न भागे न मिले पीठ दिखाने वाले

मुश्किलात में न भागे न मिले पीठ दिखाने वाले खुदा ने दोस्त दिए डटकर साथ निभाने वाले जब रात घनी थी अंधेरा था बहोत रिश्ते थे हाथ पकड़ राह बताने वाले ज़िंदगी दर्द देती रही इश्क गम देता रहा ऐसे मिले यार जो रोते से हँसाने वाले और खुदा से दुआ क्या मांगता “सैनी” वो थे तेरी हर दुआ में हाथ उठाने वाले :शशिप्रकाश सैनी 

क्यों मंदिरों में भीड़ बड़ी लंबी कतार

श्रद्धा हो अगर मन में भी मिल जाएगा ईश्वर फिर क्यों मंदिरों में भीड़ बड़ी लंबी कतार अमीरों को तो कतारों का भी समय नहीं रहता हो सकता है इनकी दुनिया में वो हर जगह नहीं रहता : शशिप्रकाश सैनी

क्या थी नाराज़गी हम समझे नहीं

क्या थी नाराज़गी हम समझे नहीं ना शिकवा ना गीला कुछ बोलिए तो जरा काले चस्मो से छुपाली है आंखे न आँसू दिखे हम अब कैसे मन में झाँकें मिलो बात करो आओ तो सही हमसे सुनो अपनी सुनाओ तो सही पास आने पे पिघल जाएगी रिश्तों की बर्फ हम भी कुछ बढ़े आप भी आए हमारी तरफ मिलते रहिये मुलाकातों का सिलसिला रहे गिले है ज़िंदगी से बहुत आप से क्यों गीला रहे : शशिप्रकाश सैनी

मयखाने की हवा हूँ मैं

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ये ना पूछिए क्या हूँ मैं हैं दुनिया बेवफ़ाई की  तो बावफ़ा हू मैं  गम-ए-इश्क का मरहम हूँ लोग कहते दिल-ए-दर्द की दावा हूँ मैं मेरी सीढियाँ करती हैं जात पात नहीं  ये किसी धर्म की मोहताज नहीं  कभी मयखाने की हवा हूँ मैं कभी बोतलों का नशा हूँ मैं ये मेरे चाहने वाले हैं, खरीदार नहीं  मै लोगो में डालता दीवार नहीं मेरे कदरदानो से पूछिए क्या क्या हूँ मैं कहते हैं इस शहर का खुदा हूँ मैं :शशिप्रकाश सैनी  //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

ओ बादल बूंदें बरसाना

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वो ठंडी पवन का झोंका था जो तूने हमको रोका था वो सावन की बरसातें थी सोंधी सोंधी सी बाते थी छोटी मोटी जो अनबन थी बिजली की फिर जो गर्जन थी तेरा बाहों में आजाना नज़रों का जो वो टकराना ओ बादल बूंदें बरसाना इतना अब तू तरसा ना कब मिलना बतला जाना ओ बादल बूंदें बरसाना अब तक यादो में ताज़ी है होठो का जो था टकराना बाहों में आना घुलते जाना अब तक यादे ताज़ी है तेरा आना तेरा जाना आँखों में जो प्यार भरा लफ्जों से कर इज़हार जरा सब कुछ मैंने है बोल दिया तू भी कुछ बतला जाना अब तू इतना तरसा ना या तो आना या तो जाना ओ बादल बूंदें बरसाना : शशिप्रकाश सैनी 

देवत्व मन का गुण

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लोभ माया लालसा हवस है मन घर हो गया है इन्ही का चलता बस है आदमी बेबस है कुछ नहीं बदलता घर में मूर्तियाँ लगाने से न काशी जाने से न गंगा नहाने से जब मन पापी है क्या होना है तन पे साबुन लगाने से देवत्व अगर मूर्तियों में ही होता तो हर मूर्तिकार का घर स्वर्ग न होता देवत्व मन का गुण सज्जन बने तज सारे अवगुण देवत्व मन का गुण मै काशी में हो के भी काशी न गया मन मैला था मन लोभ से भरा लालसा हवस का पहरा अपनी नज़र से न नज़र मिला पाए तो कैसे कशी जाए कैसे गंगा नहाए दानवीय युग में देवत्व लाना कठिन सज्जनता मुश्किल दुर्जनता मुमकिन चाँद की चाँदनी में है सूरज की रोशनी में है चिड़िया की चहचहाहट में हवा की सरसराहट में भोर की पवन में है बच्चो के बचपन में है देवत्व कही है तो यही है मूर्तियों में नहीं है :शशिप्रकाश सैनी 

हँसना ज़िन्दगी है

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ख़ुशी है एहसास है  आपका मुस्कुराना ख़ास है गम की लकीरों पे हँसी भारी है  आप प्यारी  आपकी मुस्कुराहट भी प्यारी है  बिना हँसी के ज़िन्दगी अधूरी है हँसना ज़रूरी है भोला है चेहरा  सुन्दर है आंखे  फिर कैसे न मन में झाँके आंखे मन में झाँकती है इतनी छुट हर किसीको न दी है  हँसना ज़िन्दगी है  हँसिए मुस्कुराते रही ये  आपका हँसना कीमती है  हँसना ज़िन्दगी है  दुनिया बुरी है  बुरे है लोग  दर्द पे न आंसू बहाए  न रो ही पाए  बुरी है दुनिया  बुरे है लोग  नटखट है दिखने में और दिल में भलाई है ये हँसी कहा से लाई है हँसना खुदाई है  न मोतीयो के मोल  न सिक्को से तोल इंसा बिक जायेगा  बहोत है प्यार के बोल आपकी हँसी अनमोल  मुस्कराहट कुदरती है दिल से जो निकली है  दुनिया ढोंग है  दुनिया नकली है बस जो लबो पे थिरकी है वाही हँसी असली है  ये भी एक ढंग जीने का ये भी रंग-ए-ज़िन्दगी है  हँसना ज़िन्दगी है  : शशिप्रकाश सैनी

आधुनिक इश्क

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चाँद है चांदनी है  गुल है गुलिस्ता है इक इस दिल से पूछिये  मेरे लिए वो क्या क्या है वो भोर की हवा है दिल-ए-दर्द की दवा है डूबते को तिनका क्या तुम पूरी नाव हो  जेठ की दुपहरी में  ठंडी छाव हो  अब क्या क्या बताए  तुम क्या क्या हो  तुम कस्तूरी की सुगंध  तुम संक्रांति की पतंग  तुम ज़िन्दगी जीने की उमंग इतना भी ज्यादा  झूठ न बुलवाओ  कही हम सच न बतादे  तुम क्या हो  तुम मेरे मोबाइल का बिल हो  तुम घाटेवाली मिल हो तुम पेट्रोल का बड़ा दाम हो तुम महंगाई का पैगाम हो तुम शौपिंग की लिस्ट हो तुम वलेनटाइन का व्यापार हो तुम खाते का उधार हो तुम बड़ा महंगा प्यार हो कितना बताए तुम क्या क्या हो तुम फेसबुक की  वो प्रोफाइल पिक हो जब तक दुझी न खिचाए तब तक बदली न जाए  तुम भावो का आभाव हो  क्या क्या बताए तुम क्या क्या हो  मन की इच्छाओ पे  तन भरी है ये प्रेम की लाचारी है  मै मन से उथला हू  तुम मन से ओछी हो हीर राँझा पे कलंक है लैला मजनू पे दाग  ये आधुनिक इश्क  ये नव युग का राग बस तन की आग  बस तन की आग

दिल अब तक मेरा बच्चा है

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मन की भी कुछ सोच है कुछ इच्छा है कब तक दिल को समझाऊ  तू अब तक बच्चा है मानी के मनमानी के खेल खेल जवानी के  बुजुर्गो की सुने तो बच्चा है छोटे कहे की  तेरा समय निकल चूका है  मन की भी कुछ इच्छा है दिल को कब तक बहलाऊ  की तू बच्चा है पलंग की सिलवटो में  कोई कहानी नहीं  कभी कोई मानी नहीं  की हम ने कोई मनमानी नहीं पलंग की सिलवटो में  कोई कहानी नहीं  न बोतलों में नशा है न होठो में धुआ है  न कही पैर फिसला है  दिल को कैसे बतलाऊ  दुनिया समझती तू बच्चा है  यही तेरी गलती है  यही तेरा दोष है तू रात के रिश्तो से  ज़िन्दगी का साथ चाहता है  बीके हुए से  जो अपनी कीमत पूछता है यही तेरी गलती है  यही तेरा दोष है ये तो सही है  की दिल अब तक तेरा बच्चा है  कोई तो ऐसी बची होगी  जो दिल की बच्ची होगी  मन की सच्ची होगी  बस उसी की इच्छा है दिल अब तक मेरा बच्चा है  : शशिप्रकाश सैनी

जिस बालक को लाया गया था थाने में

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जिस बालक को लाया गया था थाने में  सुनते है पकड़ा गया था रोटी चुराने में पड़े घुसे पड़ी लाठी उधेडी थी खाल  पूरा सिस्टम लगा उसे मुजरिम दिखाने में  जो खुनी है जो इज्ज़त के लुटरे है  पार्टिया लगी है उन्हें संसद बुलाने में  चली कुर्सीया चले जूते चले चप्पल  नेता लगे है संसद को बीहड़ बनाने में  : शशिप्रकाश सैनी

सीने में अब तक कोई क़रार न मिला

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सीने में अब तक कोई क़रार न मिला प्यार पर लिखते रहे पर प्यार न मिला दुनिया का दस्तूर न रास आता हमको एतबार के बदले एतबार न मिला जिसके गुनाह की सजा हम काटते रहे बहुत तलाश किया पर वह गुनाहगार न मिला बस रूश्वाईयो का होकर रह गया शिकार "सैनी" दिल को दिल्लगी नहीं किसी मोड़ पे इंतजार न मिला : शशिप्रकाश सैनी