Posts

Showing posts from December, 2011

अपनी गलतियों का भोझ आप ही ढोता हूँ

Image
अपनी गलतियों का भोझ आप ही ढोता हूँ गंगा खुद मैली हैं मै वहा पाप नही धोता हूँ पाप धोने के लिए बहोत हैं आंख के आँसू रात रो अंतर्मन पश्चाताप से ही भिगोता हूँ हम इंसानों ने कर दी गंगा इतनी मैली की गंगा माँ विलाप रही मै भी रोता हूँ एक दिन रूठ के चली जाएगी गंगा अनर्थ का बीज कुछ तुम बोते हो कुछ मै बोता हूँ सिर्फ लिखता हैं कुछ करता नहीं "सैनी" जहा माँ डूबती हैं मै स्याही में बस कलम डूबोता हूँ : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

अंदाज़ हैं ऐसा दिलवाला बच के किधर जाएगा

Image
अंदाज़ हैं ऐसा दिलवाला बच के किधर जाएगा घड़िया धीमे हो गयी लगता हैं समय ठहर जाएगा अगर तेरी तस्वीर कोई ले गया मैखाने में कभी नशा बोतलों में भरा हैं जो सारा उतर जाएगा नज़रो में हैं जादू भरा या हो कोई अप्सरा देखने वालो पे तिलिष्म असर कर जाएगा ये जलजला हैं कोई जैसे हुस्न-ए-अदा का मजबूत दिल बचेंगे कमज़ोर दिल बिखर जाएगा तस्वीर खीचने वाला खुशकिस्मत हैं बड़ा "सैनी" होती हैं जलन तस्वीरे बटोर के सारी घर जाएगा : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

ये ख़ासियत रही उस मुलाक़ात की

Image
ये ख़ासियत रही उस मुलाक़ात की जुबा कुछ कह न सकी आँखों ने सब बात की ये दुनिया हैं सब पैसे से चलते हैं खबर लेता नहीं कोई बिगड़े हालात की जो करते हैं लड़कियों पे छीटा-कसी न जाने किस घर के हैं उपज हैं किस ख़यालात की हमसे रूठी हैं यूँ बात भी करती नहीं नाराज़गी हैं न जाने किस रात की किस गम में भीगी हैं छत की सीढ़ियां " सैनी"  किसके जज़्बात छलके किस आंख ने इतनी बरसात की : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

मैं चलने के लिए बना था मैं उड़ न सका

Image
Photo Courtesy: Saishyam and Arun Photography रुकना साँस लेना मेरी ज़रूरत थी जब भी मैं रुका दुनिया ने कह दिया, मैं पीछें रह गया मैं चलने के लिए बना था वो कहते रहे, मैं उड़ न सका विचार बीज थे मैं मिट्टी था दुनिया से अलग सोचता मैं मिट्टी था बारिश की बूदों पड़े तो मैं खुशबू सूरज की रोशनी में जादू कि विचारों में जिंदगी भर दू उपजाऊ था पर था तो मैं मिट्टी ही कइयों ने समझाया सोना होना ज़रुरी है मिट्टी का नहीं है मोल सोना है अनमोल मुझें खलिहानों में होना था बारिश धुप में भिगोना था पर भट्टी में जलाया गया मुझें कि लोगो की चाह में सोना था पर मैं तो मिट्टी था मुझें मिट्टी ही होना था मैं चलने के लिए बना था मैं उड़ न सका क्या सोना होना इतना ज़रुरी है क्या सोना फसल बनेगा क्या सोना पेट भरेगा क्या सोना आसमान से बरसेगा और बीजो में जीवन भरेगा सोना कीमती है पर मैं भी हूँ अनमोल पर मुझें इतना तपाया गया कि मैं मिट्टी भी न रह सका विचार मेरे जल गए नसों में लड़ने की कूबत थी सब भाप बन निकल गए मैं चलने के लिए बना

एक मुट्ठी रेत की

Image
Saishyam and Arun Photography जमीं अब सरहदों में है आसमां मेरी हदों में है नदिया बांध सकता हूँ मैं  चाँद कदमो में है जो तुने बनाई थी दुनिया  आज मैंने जीत ली  मौत इशारे पे मेरे  पैरों में मेरे जिंदगी  खुदा होने लगा हूँ  बंदे करेंगे बंदगी  एक हाथ रखता हूँ मौत  दूजे में भरी है जिंदगी  रातो को दिन किया मैंने  इतनी भरी है रोशनी  बाटता हूँ गम  बाटता हूँ  खुशी  खुदा होने लगा हूँ  बंदे करेंगे बंदगी  मेरे अहंकार पे  बस उसने यही भेट दी एक मुट्ठी रेत की  मेरी तरफ फेंक दी कहा उसने  बांधलो इसे चल दो अभी गर एक चुटकी रेत भी  रास्ते में ना गिरे खुदा मैं भी कहूँगा  और मैं भी करूँगा बंदगी  शहर जीते थे मैंने जीते थे घर कई  पर एक मुट्ठी रेत भी मेरे हाथो में ना रह सकी  खुदा होने की जिद  उसने कइयों की दफ्न की एक मुट्ठी रेत की  मेरे अहं पे डाल दी  गलतियों की सजा बराबर है दी जिसने भी खुदा होने की हिमाकत की उनकी कब्रों पे चड़ाता नहीं कोई  एक मुट्ठी रेत भी  : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्र

कोयले से हिरा होना चाहता हूँ

Image
कोयले से हीरे होने की जलन ढूढ़ता हूँ दर्द ढूढ़ता हूँ चुभन ढूढ़ता हूँ काली घनी रात  जब हाथ को ना दिखे हाथ  मै चूल्हें टटोलता हूँ शोले दामन पे उड़ेलता हूँ हर रात जिंदगी जलाता हूँ की मै कोयले से हिरा  होना चाहता हूँ जो लकीरे पाप की  मेरे हाथो से मिटा दे अंगारा ऐसा हो  जो हाथ के साथ  लकीरे जला दे  कालिख की लकीरे धोना चाहता हूँ फिर से हिरा होना चाहता हूँ कालिख अपने साथ लिए चलता हूँ कोयला हूँ बस कालिख मलता हूँ दिल तोड़े हैं दिल जलाए हैं खंजर बेवफ़ाई की कई अरमानो पे चलाए हैं की अब जो छुएगा अपनाएगा  साथ घर ले जाएगा बस कालिख पाएगा  कोयला हूँ पश्च्याताप मांगता हूँ मुझे बना दे हिरा  वो आग मांगता हूँ दर्द चुभन मांगता हूँ जलन मांगता हूँ अब पापों का पतन मांगता हूँ जो बना दे इस कोयले को हिरा वो जतन मांगता हूँ : शशिप्रकाश सैनी  © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

रंग-ए-मोहब्बत

Image
सुबह की धुप हैं या पहली बरसात हैं मोहब्बत भी वही बात हैं आभास हैं की दिल के पास हैं पर एक दिन बादल आगे निकल जाएगा आज बरसा हैं कल कही और बरस जाएगा मोहब्बत हैं तो हैं पर ये जिंदगी नहीं हैं जिंदगी बिना इसके भी कट जाएगी कईयो की निपटी हैं हमारी भी निपट जाएगी फिर वही सुबह होगी फिर गुल खिलेंगे वो दुनिया नहीं हैं मेरे लिए की वो नहीं होगी तो दुनिया ही मिट जाएगी सासों की डोर तेरे पास नहीं हैं तू जमीं नहीं हैं मेरी तू मेरा आकाश नहीं हैं आंखे खुली तो ये सुनता रहा हर गुल के लिए बना हैं भवंरा पंखो को जोरो से फडफडाना हैं की गुल ढूँढना हैं गुलिस्ता बसाना हैं आग दे या पराग दे या की जलता चिराग दे किसी की आग मिटना हैं किसी के रंग मिलना हैं प्रीत रीत दुनिया की हमे यही गीत गाना हैं हैं भीड़ बहोत पर किसी को तो अपनाना हैं मोहब्बत चलन दुनिया का हमें ये चलन निभाना हैं मोहब्बत की ताकत इतनी की दुनिया बदल जाती हैं जहर काम ना आता मीरा मौत के चंगुल से निकल जाती हैं जब दर्द हो जाता हैं साँझा कोई हीर होता हैं कोई होता हैं राँझा यु रह

अंधेरा हैं कितना

Image
रातो के हो गए हैं पुजारी की दिन की खबर नहीं हैं पैसो की हैं ये दुनिया मेरा ये शहर नहीं हैं दिन में भी ये जलाते हैं बत्तियाँ इतना ना जाने यहाँ अंधेरा हैं कितना आदमी अपने साये पे भी शक करता हैं हाथ हाथ मिलाने से डरता हैं पैसो से हर चीज तोलने लगा हूँ की मै भी पैसो की जुबाँ बोलने लगा हूँ नीद बेचता हूँ बेचता हूँ सांसे भी बेचे हैं त्यौहार बेचीं हैं उदासी भी हंसी बेचीं हैं आसू भी एक दिन बिक रही थी जिंदगी और मैंने बेच दी हर चीज का हैं दाम  दोस्ती बिकती हैं हो जाती हैं मोहब्बत भी नीलाम पैसो के दम रिश्ते हैं पैसो के दम मकान  पर कोई घर नहीं हैं क्यूकी ये मेरा शहर नहीं हैं जहा चाय की दुकान और वाडापाँव की गाड़ी थी मौसी से अन्ना तक सबसे पहचान हमारी थी उन्मुक्त परिंदा था सुबह का बाशिंदा था सूरज की सरपरस्ती में जिए  अपने पंखो को हवा दी खूब उड़े साँस फुली  मगर हौसला टुटा नहीं इन दीवारों में किसे अपना कहे जो पैसो से परे चाहे हमे  दोस्ती जहा मतलबी ना हो  हम बाज़ार में इतना रहे  की रिश्ते बाजारू हो गए अब किसे अपना कहे