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Showing posts from July, 2011

मै ईमारत पुरानी सही

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मै ईमारत पुरानी सही मै ईट पत्थर का मकान एक दौर था मुझ में बसती थी जान थी खिड़किया थे रोशनदान हर कोने में अरमान बच्चो की किलकारियां बुजुर्गो का ज्ञान ऐसी थी ज़िन्दगी हमको भी था अभिमान मै ईमारत पुरानी सही मै ईट पत्थर का मकान आज जर जर हूँ  और वीरान हालात से परेशान बस अब ईट पत्थर हूँ  नहीं रहा मकान मै ईमारत पुरानी और बेजान : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

हँसे मुस्कुराए या हम आंसू बहाए

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दर्द मेरी मंजिल हैं और प्यार हैं सफ़र जब भी बसाता हूँ घर जाता हूँ किस्मत की नज़रो से उतर बसाए हैं मैंने कई बार घरोदे पर कम दी हैं उसने इश्क की उम्र दर्द मेरी मंजिल हैं और प्यार हैं सफ़र जो जख्म देता हैं मुझे हरदम उसे अपना रहनुमा कैसे बनाए क्यों जाए उस दर और क्यों सर झुकाए आँखों से बहता हैं लहू अपनों ने दामन छोड़ा यूँ अब आप बीती किसे सुनाए झोली मे ईनाम नहीं बस सजाए हँसे  मुस्कुराए या हम आंसू बहाए दिल-ऐ-हाल बताए तो किसे बताए इन दिनों मालूम नहीं घर का पता कोई रास्ता दिखाए कुछ तो बताए हम जाए तो कहा जाए इस शहर से दोस्ती नहीं कोई जानता नहीं अजनबी हूँ मै कोई मरहम लगाए तो क्यों लगाए हैं अब भी दुनिया के सवालो मे छुपी बैठी हैं ख्यालो  मे उसे भुलाए तो कैसे भुलाए वो मैकदा कहा जहा मिलती हैं ख़ुशी प्यालो में हमे भी बताए हमे भी दिखाए : शशिप्रकाश सैनी Translation of this poem Love is my journey and pain is destination Whenever  I tried to be in relationship Luck is not in my favor Been in relationship many times All was temporary none was permanent

ज़िन्दगी अरमानो का खज़ाना हैं

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कभी ख़ुशी कभी गम का आना जाना हैं ज़िन्दगी अरमानो का खज़ाना हैं दर्द दिखाना हैं प्यार जताना हैं हम भी हैं इंसा ये दुनिया को बताना हैं ज़िन्दगी अरमानो का खज़ाना हैं कौन हैं इश्क मेरा अब नहीं छुपाना हैं दिल खोल के दिखाना हैं ज़ज्बातो को शब्दों में समाना हैं ये कवि तेरा ही दीवाना हैं  ज़िन्दगी अरमानो का खज़ाना हैं बचपन से यौवन का सफ़र हैं ये तो बुढ़ापा भी आना हैं महबूब की बाहों में ये सफ़र बिताना हैं ज़िन्दगी अरमानो का खज़ाना हैं हर पल में जीना जाने कब मर जाना हैं बस चंद सांसो का ठिकाना हैं जीतनी भी मिली सांसे  बस हँसना और दुनिया को हँसाना हैं ज़िन्दगी अरमानो का खज़ाना हैं : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

मै छुलु जिसे वो पत्थर हो जाता हैं

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मै छुलु जिसे वो पत्थर हो जाता हैं  और दिल मेरा बिखर जाता हैं  प्यार हिस्से में मेरे कभी नहीं आता हैं  मै छुलु जिसे वो पत्थर हो जाता हैं  मेरा जुर्म क्या ये कोई नहीं बताता हैं  मै छुलु जिसे वो पत्थर हो जाता हैं  जल जाता है या पिघल जाता हैं  हाथो से मेरे इश्क फिसल जाता हैं  मै छुलु जिसे वो पत्थर हो जाता हैं  दिल मेरा रोता हैं  छटपटाता हैं  दिल मेरा पत्थर नहीं हो पाता हैं  चहरे से सारी भाव भंगिमाए मेरा स्पर्श ले जाता हैं  गम ही मेरे हिस्से आता हैं  मै छुलु जिसे वो पत्थर हो जाता हैं  : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

तुम जीवन की महर्षि

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तुम जीवन की महर्षि  तुम यौवन की उर्वशी तुम रास्ता हो जीने का सावन की तुम हो मेनिका तुम जीवन की आभा सौन्द्रय में रम्भा रंग होली के गुलाल सा जीवन की तुम मेरी लालसा तेरे लिए ही लड़ते हम जीवन से रण तुम मेरी ज़िन्दगी का कारण तुम अरमानो का प्रतिबिम्ब तुम सवप्नो का कुटुम्ब तुम जीवन का महाकुम्भ : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

ये आदमी जिंदा नहीं

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मेरी मौत का फरमान मुझ से छुपा के ले गयी और कह गयी लोगो से वो ये आदमी जिंदा नहीं खंजर-ऐ-घाव हैं  नासूर सा हुआ हैं  दिल पर अब भी नहीं मौत के काबिल मेरी धडकनों को शोर-ए-गुल में दबाए रह गयी और कह गयी लोगो से वो ये आदमी जिंदा नहीं किये जिस से वार मेरा दिल ही मेरे गुनाहगार का हथियार था जो हुआ कत्ल वो मेरा प्यार था दिल धड़कता नहीं उसका जैसे बची कोई भावना न हो ऐ खुदा ज़िन्दगी में ऐसे पत्थर से फिर सामना न हो खुद मर गयी हैं वो और कह गयी लोगो से वो की मै जिंदा नहीं : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

कब तक अंतर्मन को टालू

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कब तक अंतर्मन को टालू कब तक पाप मन में पालू विद्रोह कर रही आत्मा क्यों करते आदर्शो का खात्मा पथ भूल तुम पथभ्रष्ट हुए मुल से ही नष्ट हुए हर पाप में प्रवीन अधर्मो में उत्तीर्ण चाल चलने में निपुण बचे हैं बस अवगुण इंसानियत में दरिद्र नहीं रहा चरित्र जाने कब से आत्मा को छल रहा धर्म कर्म मेरा ही जल रहा नसे जब थी खोखली बुनियाद तब की हिली कब तक घ्रिणा को झेलू  कब तक आत्मा से खेलू कब तक पाप ये संभालू कब तक अंतर्मन को टालू : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

सामर्थ्य

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प्रश्न वाचका हो प्रश्न पूछना हैं तो सामर्थ्य होना चाहिये प्रेम की परिभाषा बता आदर्श को प्रेम व प्रेम को आदर्श बना पर सामर्थ्य होना चाहिये सामर्थ्य हैं यो प्रेम कर सामर्थ्य हैं इज़हार कर परिणाम कुछ भी हो ज़िन्दगी सिंह सी जियो तंग आ गया हैं नियमो से बंधनो से तो दब के जीना छोड़ दे अगर सामर्थ्य हैं सामर्थ्य है तो विद्रोह कर सामर्थ्य हैं तो बन स्वयम का ईश्वर तू चून कंकरो से भरी धरा या मखमल सा परतंत्रता का हो विष भरा कमजोर हैं या की निर्बल बना अटल अपनी रहा पर चल गर सामर्थ्य का पर्याय हैं  तो  शक्ति प्रदर्शन कर पैदा कर प्रतिवंदी में डर सामर्थ्य हैं तो इन्द्रियों को हर सुपात्र बना या कुपात्र यश फैलेगा सर्वत्र सिह अपना सामर्थ्य नहीं खोता इसलिए हर जंगली जानवर सिंह नहीं होता या तो अच्छा बन या बुरा सिखंडी की जिंदगी जीना छोड़ पवन सा आवेगा ला सूर्य का यश तो दिखा अगर सामर्थ्य हैं तो इंसान बन : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

कुछ धड़कने कम है

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वो बना गया चालाक इस वक़्त वो व्यवहारिका हैं  ज़ुल्म देख - मुह मोड़ लेता हैं  धड़कना छोड़ देता हैं  इंसानियत मर गयी इसकी सुनता नहीं कोई मेरी सिसकी दिल हैं मेरा दहशत में या खो गया हैं किसी गफलत में ये रोता नहीं अंधेरो में ये सोता है सवेरो में ये बना गया कलयुगी सो इसकी धड़कने रुकी मुझे कर रहा पंगू अब मरे हुए से क्या मै इन्सानियत की भीख मांगू अत्याचार देख ज़ुल्म सह न मै हाथ उठता हूँ न मै चीखता-चिल्लाता हूँ संवेदना में नहीं बहकता हूँ दिल भी कहता मै सोच समझ की धड़कता हूँ अब लगता कुछ धड़कने वाकई कम हैं : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

मै मनचला नहीं

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गर खुदा दुआ दे तो यही चाहूँ की मौसम-ऐ-इश्क की हर बहार में फुलू कुछ उसकी हद में तो कुछ तेरी मद में झूमू हर रात एक नयी रात हो और दिन एक नया बसेरा दे मेरी मानो तो यही एक अमृत निकला हैं   मंथन से इसके कुछ बूदे मुझे भी दे ना जन्मो का ना उम्र भर का गर खुदा कुछ देना ही हैं  थो रात भर का बसेरा दे कुछ नया करने की चाह आदमी से क्या-क्या कराती हैं  मुझे तो ये हर रात बरगलाती हैं  बस यही चाह हैं  मोहब्बत एक किराये का घर हो जो मै रोज बदलता रहू  हर कलि मेरे नाम को जाने  हर गली मेरे काम को माने  गर खुदा दुआ देनी हैं  तो बस ये दे गर एक बस छुठे थो दूसरी मिले गर खुदा बुरा माने थो तू मत बुरा माने हज़ार टुकड़ो में दिल किया मैंने दर्द सहता रहा और प्यार बाटता रहा : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

खोया था सम्मान

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झेली हैं अवहेलना झेला हैं अपमान खोया था सम्मान अपनी ही नजरो से गिरा ऐसा था इंसान बरसे थे ताने  लगे कहर बरसाने समय बड़ा अपनी गती से मै बिखरा दूरगति से कुछ न बदला मेरी मति से यू लगा जो होता हैं वो हो रहा हैं सहमती से यूँ लगा ज़िन्दगी बोझ हैं  एक दिन का मरना ठीक क्यों मरना रोज़ रोज़ हैं  हिम्मत टूटी विश्वास झूठा क्यों इश्वर मुझसे ही रूठा : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved